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हो गए | चतुर्दिक् खोजी दल दौड़ाए गए। आखिर तरंगवती और पद्मदेव को खोज लिया गया । उनको ससम्मान कौशाम्बी में लाकर उनका पाणिग्रहण कराया गया ।
बारह वर्षों तक तरंगवती और पद्मदेव ने दाम्पत्य सुख भोगा । बाद में एक मुनि से प्रबुद्ध बनकर उन्होंने संयम धारण किया और चारित्र का पालन कर दोनों ने देवभव प्राप्त किया। आगे के भवों में वे दोनों मोक्ष में जाएंगे। - तरंगवती कथा
तामली तापस
एक तापस ।
तापस प्रव्रज्या धारण करने से पूर्व वह ताम्रलिप्ति नगरी का एक समृद्ध गाथापति था । आगामी भव में भी समृद्धि को अक्षुण्ण रखने के लिए तापस दीक्षा अंगीकार कर उग्र तपश्चरण करने लगा। वह सूर्य की आतापना लेता, शीत परीषह सहता और अति रुक्ष आहार से पारणा करता । अंत में जब उसका शरीर अस्थिपंजर मात्र रह गया तो उसने पादपोपगमन संथारा कर लिया ।
कहते हैं कि उस समय असुरकुमार देवों की राजधानी बलिचंचा इन्द्रविहीन थी। असुरकुमारों ने ज्ञानोपयोग से तामली तापस को समाधिमरण की अवस्था में देखा। उन्होंने संकल्प किया कि वे तामली तापस को निदान के लिए उकसाकर अपने इन्द्र के रूप में जन्म लेने के लिए मनाएं । असुरकुमार देव तामली तापस के पास पहुंचे और विभिन्न राग-रंग और नाटक दिखाकर उसे प्रसन्न करने की कोशिश करने लगे। अपना मंतव्य प्रकट करते हुए उन्होंने तापस से प्रार्थना की कि वह उनके इन्द्र के रूप में जन्म लेने का निदान करें । पर तामली तापस ने उनकी बात को नहीं सुना और अपनी साधना में लीन रहा । देहोत्सर्ग करके वह दूसरे स्वर्ग के ईशानेन्द्र के रूप में पैदा हुआ।
उधर असुरकुमार देवों ने इसे अपना अपमान माना और वे धरती पर आकर तामली तापस के शव का अपमान करने लगे। दूसरे स्वर्ग के देवों ने अपने स्वामी के पूर्वजन्म के शरीर की उक्त दशा देखी। उन्हें यह बुरा लगा और ईशानेन्द्र से शिकायत की। ईशानेन्द्र भी क्रोधित हो गया। उसने असुरकुमारों पर तेजोलेश्या का वार कर दिया। सभी असुरकुमारों के शरीर दग्ध होने लगे । वस्तुस्थिति से परिचित बनने पर वे नतशिर अवस्था में ईशानेन्द्र के पास गए और अपने दुष्कृत्यों के लिए क्षमा मांगने लगे। ईशानेन्द्र ने तेजोलेश्या का साहरण कर लिया। तभी से असुरकुमार देव ईशानेन्द्र के अधीन हो गए ।
तारण स्वामी (कवि)
एक संवेगी श्रावक, धर्मोपदेशक और साहित्यकार ।
आपका जन्म कटनी ग्राम (मध्यप्रदेश) में हुआ। आपके पिता का नाम गाढ़ाशाहू और माता का नाम वीरश्री था ।
आपने अपने जीवन काल में चौदह ग्रन्थों की रचना की, जो तारण - अध्यात्मवाणी के नाम से विश्रुत हैं। आप द्वारा प्रणीत ग्रन्थों की नामावली निम्नरूपेण है
(1) मालारोहण (2) पण्डित पूजा (3) कमल बत्तीसी ( 4 ) श्रावकाचार (5) ज्ञान समुच्चयसार (6) उपदेशशुद्धसार (7) त्रिभंगीसार ( 8 ) चौबीस ठाना ( 9 ) ममलपाहुड ( 10 ) श्वातिकाविशेष ( 11 ) सिद्धिस्वभाव ( 12 ) सुन्न स्वभाव ( 13 ) छद्मस्थवाणी ( 14 ) नाममाला ।
ये सभी ग्रन्थ अध्यात्म सूत्रों और चिन्तन से पूर्ण हैं | ••• जैन चरित्र कोश ••
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