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सम्पन्न किसान थे। तुम्हारे खेत में छह सौ हल चलते थे। एक बार भोजन के समय भी तुम काम के लोभ में हलों को चलवाते रहे। छह सौ हाली और बारह सौ बैल भूख से व्याकुल थे पर तुम्हारे आदेश से विवश हुए काम कर रहे थे। उस क्षण तुमने जो अन्तराय कर्म बांधा, वही आज उदय में आया है।
पूर्वभव के वृत्तान्त के सत्य ने ढंढण मुनि की समता को और अधिक प्रकृष्ट बना दिया। मोदकों को लेकर वे प्रासुक भूमि पर पहुंचे और उन्हें चूर-चूर कर परठने लगे। भावों की सुनिर्मलता से उनके कर्म भी चूर्ण हो गए। केवलज्ञान प्राप्त कर वे मोक्ष में जा पहुंचे ।
-त्रिषष्टि शलाका पुरुषचरित्र ढंढणा
त्रिखण्डाधीश वासुदेव श्री कृष्ण की एक रानी, जिसके पुत्र का नाम ढंढण कुमार था। (दखिए-ढंढण मुनि)
णायपुत्त
णायपुत्त अर्थात् ज्ञातपुत्र, ज्ञातृपुत्र । ज्ञातृ कुल में जन्मे होने से तीर्थंकर महावीर का एक नाम णायपुत्त भी विख्यात है।
...जैन चरित्र कोश..
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