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टोडरमल (जैन साहित्यकार) _ विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न एक जैन श्रावक।
टोडरमल जी अपनी विलक्षण विद्वत्ता और अगाध ज्ञान के कारण 'पंडित' और 'आचार्यकल्प' उपनामों से विश्रुत हुए।
__पंडित जी का जन्म जयपुर में वि.सं. 1797 में हुआ। आपके पिता का नाम जोगीदास और माता का नाम रमादेवी था। जाति से आप खण्डेलवाल थे। आप अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान थे। बाल्यकाल से ही आप प्रखर मेधा सम्पन्न थे। तत्त्वों को समझने और सुलझाने में आपकी बुद्धि अद्भुत थी।
वाराणसी से आमन्त्रित एक विद्वान के सान्निध्य में आपकी शिक्षा-दीक्षा हुई। अल्पकाल में ही आप संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं तथा दर्शन और व्याकरण के मर्मज्ञ बन गए।
पंडित टोडरमल जी 15-16 वर्ष की अवस्था में ही लोक में प्रसिद्ध हो गए थे। वे प्रवचन करते थे और जयपुर के गण्यमान्य लोग उनका प्रवचन सुनने आते थे। शास्त्र स्वाध्याय के साथ ही साहित्य रचना के क्षेत्र में भी पण्डित जी ने काफी काम किया। मात्र अठारह-उन्नीस वर्ष की अवस्था में उन्होंने गोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणसार एवं त्रिलोकसार पर 65000 श्लोक परिमाण टीका की रचना की थी, जो अलौकिक-सी बात लगती
पण्डित टोडरमल की चार मौलिक रचनाएं भी हैं-(1) मोक्षमार्ग प्रकाशक (2) आध्यात्मिक पत्र (3) अर्थ संदृष्टि और (4) गोम्मटसार पूजा। उन के टीकाकृत ग्रन्थों की संख्या सात है, जिनकी नामावली इस प्रकार है-(1) गोम्मटसार (जीवकाण्ड) (2) गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) (3) लब्धिसार (4) क्षपणसार (5) त्रिलोकसार (6) आत्मानुशासन (7) पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय। अन्तिम ग्रन्थ की टीका अपूर्ण रह गई है। ___अल्पवय में ही पंडित टोडरमल की सुख्याति कुछ धर्म-द्वेषियों की ईर्ष्या का कारण बन गई और पंडित जी उनके षड्यन्त्र के शिकार बनकर मात्र 27 वर्ष की अवस्था में ही दिवंगत हो गए। वि. सं. 1824 में उनका स्वर्गवास हुआ।
पंडित टोडरमल जी आगमवेत्ता, व्याख्याता, गद्य-पद्य विधाओं के लेखक और टीकाकार थे। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं के अतिरिक्त कन्नड़ भाषा पर भी उनका असाधारण अधिकार था, जो उन्होंने बिना पढ़े ही मात्र स्व-अभ्यास से सीख ली थी।
-तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा
... जैन चरित्र कोश ..
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