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________________ दोगुने उत्साह से जिनधर्म की आराधना कर लेंगें। जिनदास ने कहा, मित्रो ! कष्ट में ही तो धर्म की परीक्षा होती है। मेरा तो आप सभी के लिए यही कहना है कि हमें अपने धर्म पर सुदृढ़ रहना चाहिए। जो धर्म पर, दृढ़ रहता है, उसे एक तो क्या, हजार दैत्य भी मिलकर मार नहीं सकते हैं। जिनदास की प्रेरणा से सभी व्यापारियों के खिसकते संकल्प पुनः सुदृढ़ बन गए। दैत्य ने एक बार फिर अपनी चेतावनी को दोहराया। पर सभी श्रावक अपने धर्म पर सुदृढ़ थे। दैत्य ने ज्यों ही यान को डुबोना चाहा, शासन रक्षक देवों ने दैत्य पर आक्रमण कर दिया। दैत्य दुम दबाकर भाग खड़ा हुआ। देवों ने जिनदास और उसके मित्र व्यापारियों की दृढ़धर्मिता की प्रशंसा की और उनकी यात्रा में वे सहायक बन गए। इससे श्रावकों की धर्मश्रद्धा पूर्वापेक्षया और अधिक सुदृढ़ बन गई। -बृहत्कथा कोष, भाग 1 (आ. हरिषेण) (घ) जिनदास ___अढाई हजार वर्ष पूर्वकालीन सौगन्धिका नगरी का राजकुमार। उसके पिता का नाम महाचन्द्र और माता का नाम अर्हदत्ता था। उसके पितामह महाराज अप्रतिहत नगर नरेश थे और उसकी दादी का नाम सुकृष्णा देवी था। जिनदास कुमार अनुपम रूप और विरल गुणों का स्वामी था। साधारणतः इस जगत में मानव के लिए जो कुछ भी दुर्लभ होता है, वह सब उसे पूर्व पुण्योदय से सहज ही प्राप्त था। ___ एक बार सौगन्धिका नगरी के बाहर स्थित नीलाशोक नामक राजोद्यान में अपने धर्मसंघ के साथ भगवान महावीर स्वामी पधारे। नागरिकों और राजपरिवार के साथ जिनदास कुमार श्री प्रभु के दर्शनों के लिए उद्यान में गया। वहां प्रभु का उपदेश सुनकर उसे आत्मिक सुख की प्राप्ति हुई और उसने भगवान से श्रावक व्रत अंगीकार किए। नागरिकों और जिनदास कुमार के अपने-अपने स्थानों पर लौट जाने के पश्चात् गौतम स्वामी ने भगवान महावीर स्वामी से जिनदास कुमार के पूर्वभव और आगामी भव के बारे में जिज्ञासा की। भगवान महावीर ने फरमाया-गौतम ! राजकुमार जिनदास अपने पूर्वभव में माध्यमिका नामक नगरी का राजा था, जहां उसका नाम मेघरथ था। मेघरथ अत्यन्त उदार और नीति-निपुण नरेश था। एक बार सुधर्मा नामक अनगार महाराज मेघरथ के महल में पधारे। मुनि मासोपवासी थे। मेघरथ ने अत्यन्त उत्कृष्ट भावों से मुनि को आहार दान दिया और महान पुण्यराशि का संचय किया। वहां का सुखद आयुष्य भोगकर मेघरथ का जीव वर्तमान जिनदास के रूप में जन्मा है। यह जिनदास कई वर्षों तक श्रावक धर्म का पालन करेगा। बाद में प्रव्रजित होगा और उत्कृष्ट संयम की आराधना द्वारा सिद्ध पद प्राप्त करेगा। १. भगवान के वचनों को सुनकर गौतम स्वामी तथा उपस्थित श्रोता वर्ग सन्तुष्ट हो गया। . कुछ समय सौगन्धिका नगरी में विराजकर भगवान महावीर अन्यत्र विहार कर गए। ___ एक बार पौषधशाला में तेले की आराधना करते हुए जिनदास को यह आध्यात्मिक चिन्तन उत्पन्न हुआ-वे नगर और उद्यान धन्य हैं, जहां भगवान महावीर स्वामी के चरण अंकित होते हैं। कितना शुभ हो कि भगवान महावीर मेरी नगरी में भी पधारें! यदि भगवान यहां पधारें तो मैं ममत्व के बन्धनों को छिन्न करके उनके श्री चरणों में आर्हती दीक्षा अंगीकार करूं! "" उधर कालक्रम से ग्रामानुग्राम विचरण करते भगवान महावीर सौगन्धिका पधारे। जिनदास कुमार की प्रसन्नता का पारावार न रहा। वह अपने आराध्यदेव के श्री चरणों में पहुंचा। प्रवचन सुन प्रतिबुद्ध हुआ। जैन चरित्र कोश .. - 211 ..
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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