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(क) जिनदास ___एक आदर्श युवक, जिसने अग्रजों के दुर्व्यवहार का विषपान करके भी सदैव उनकी कल्याण-कामना का ही अमृत वर्षण किया। उसकी पत्नी का नाम सुगुणी था, जो अपने नाम के अनुरूप ही परम गुणवान और सुरूपा थी। उक्त आदर्श दम्पती का संक्षिप्त परिचय निम्नोक्त है
जिनदास महेन्द्रपुर नगर के श्रेष्ठी सोहन साहू के चार पुत्रों में सबसे छोटा था। सेठ के तीन अन्य पुत्रों के नाम थे-आबड़, जाबड़ और खाबड़। आबड़ के जन्म लेते ही सेठ की समृद्धि आधी रह गई। जाबड़ ने जन्म लिया तो सेठ कंगाल हो गया और खाबड़ के जन्म से झोंपड़ी में रहकर भी सेठ को अन्न के दाने-दाने के लिए भटकना पड़ा। पुण्य योग से चतुर्थ पुत्र जिनदास के जन्म लेते ही सेठ की समृद्धि लौट आई। वह पहले से भी अधिक धनी बन गया। घर में सभी भांति के ऐश्वर्य सजीव हो गए। चारों भाइयों के विवाह हो गए। जिनदास का विवाह सुगुणी नामक नगर सेठ की पुत्री से सम्पन्न हुआ।
जिनदास और सुगुणी, दोनों के हृदयों में देव, गुरु और धर्म के प्रति अनन्य आस्था थी। दोनों अपना अधिकांश समय धर्माराधना में व्यतीत करते थे। आबड़, जाबड़ और खाबड़, तीनों बड़े भाइयों और उनकी पत्नियों को धर्म का बोध नहीं था और न ही धर्म में उनकी रुचि थी। वे ईर्ष्यालु, झगड़ालु और दंभी प्रकृति के प्राणी थे। नगर में जिनदास का बड़ा यश था। इससे तीनों भाई उससे द्वेष रखते थे। दिन-प्रतिदिन किसी
किसी उपाय से जिनदास को अपमानित करने का उपक्रम करते। परन्त जिनदास भाइयों की विनयभक्ति करता, उन्हें प्रसन्न रखने की चेष्टा करता। सुगुणी को भी निरन्तर जेठानियों की कटूक्तियों और दुर्व्यवहार को झेलना पड़ता। परन्तु वह सहनशीलता की प्रतिमूर्ति थी। जेठानियों से अनादर पाकर भी वह उनका आदर करती थी।
जिनदास की प्रतिष्ठा से व्यथित अग्रजों ने उसे अलग करने का निर्णय किया. परन्त जिनदास ने अपनी विनयभक्ति से उन्हें वैसा नहीं करने दिया। जेठानियां भी निरन्तर अलग घर बसाने को उत्सुक रहती थीं।
आखिर एक दिन तीनों भाइयों और भाभियों ने अलग होने की हठ पकड ली। सेठ सोहन साह ने भी अपने हृदय को कडा कर चारों पत्रों को अलग करने का मन बना लिया। पर जिनदास जानता था कि पिता का वह फैसला उनके लिए अति कठिनाई और विवशता में लिया गया फैसला है। उसने अपनी पत्नी से विचार-विमर्श किया और उसके अनुसार दोनों पति और पत्नी खाली हाथों से घर छोड़कर विदा हो गए। दूसरे दिन प्रातः माता-पिता ने जब यह जाना कि उनका पुत्र और पुत्रवधू घर छोड़कर चले गए हैं तो वे इस कष्ट को सह नहीं सके और परलोक सिधार गए।
जिनदास और सुगुणी ने कुछ दिन भारी अभाव और कठिनाई से बिताए। पर वे दृढ़धर्मी और पुण्यशाली थे, फलतः कुछ ही दिनों में समृद्धि उनके चरण पखारने लगी। पोलासपुर नगर में जाकर जिनदास व्यापार करने लगा और संक्षिप्त समय में ही नगर का समृद्धिशाली श्रेष्ठी बन गया। उधर जिनदास के घर से विदा होते ही आबड़, जाबड़, और खाबड़ का भाग्य रूठ गया। घर में चोर घुसे और घर को खाली कर गए। गोदाम आग की भेंट चढ़ गए। व्यापार चौपट हो गया। भिखारी बनकर दर-दर भटकते हुए पोलासपुर पहुंचे। नियति ने उनको जिनदास से मिला दिया। जिनदास ने भाइयों और भाभियों को हार्दिक मान दिया। अग्रजों के हृदयों के मैल भी धुल चुके थे। टूटा परिवार पुनः जुड़ गया। सब सानन्द रहने लगे।
जीवन को धर्मध्यानपूर्वक व्यतीत करते हुए अंतिम अवस्था में जिनदास और सुगुणी ने संयम धारण किया और आयुष्य पूर्ण कर स्वर्ग पद पाया। जन्मान्तर में वे दोनों निर्वाण प्राप्त कर सिद्ध होंगे। ... जैन चरित्र कोश .m
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