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चंपा सेठानी
राजगृह नगर की एक समृद्ध महिला। (देखिए-कृतपुण्य) चतुरंगचंद्र . कंचनपुर नरेश । एक न्यायनीति सम्पन्न, भक्त हृदय और श्रमणोपासक सम्राट्। उसने भगवान महावीर स्वामी से श्रावक के द्वादशव्रत ग्रहण किए थे, जिनका वह पूर्ण यत्न और समर्पित मन से पालन करता था।
एक दिन संध्या-सामायिक के लिए राजा अपने साधना कक्ष में पहुंचा। घृतदीप की सात्विक रोशनी कक्ष में व्याप्त थी। राजा ने सामायिक ग्रहण की और निश्चल देह और एकाग्र मन से कायोत्सर्ग में खड़े हो गए। उन्होंने अपनी दृष्टि को घृतदीप की लौ पर सुस्थिर करते हुए संकल्प किया कि जब तक लौ जलती रहेगी, तब तक वे अखण्ड समाधि में तन्मय बने रहेंगे। इस वज्र संकल्प के साथ सुमेरु की तरह अडोल बनकर राजा खड़े हो गए। एक प्रहर बीतने को आया, दीप का घृत चुकने लगा। कक्ष परिचारिका दासी ने राजा की साधना में विघ्न उत्पन्न न हो, इस विचार से धीरे से वहां जाकर दीप को पुनः घृत से पूर्ण कर दिया। दासी के इस कार्य को देखकर राजा अपने मन में किंचित् भी विचलित नहीं हुए। उनका संकल्प सुदृढ़ से सुदृढ़तर बनता गया। जब-जब घृत चुकने को आता, दासी दीप को घृत से पूर्ण कर देती। प्रहरों प्रहर बीत गए। राजा को विशेष साधना में तन्मय जानकर राजमहल के किसी भी सदस्य ने उनकी साधना में विघ्न उपस्थित करना उचित नहीं समझा। आखिर अपलक / अडोल समाधि में रहते हुए ही राजा देहोत्सर्ग कर स्वर्गस्थ हो गए।
कहते हैं कि महाराज चतुरंगचंद्र का थोड़ा आयुष्य और शेष होता तो वे जिस भावभूमि पर विहार कर रहे थे, वहां से सीधे मोक्ष में जाते। आयुष्य पूर्ण कर राजा बारहवें देवलोक में गए। वहां से आयुष्य पूर्ण कर एक भव मनुष्य का लेकर निर्वाण को प्राप्त करेंगे। चतुर्मुख ___ वर्तमान अवसर्पिणी काल के सप्तम नारद। (देखिए-नारद) चमर
भगवान सुमतिनाथ के सौ गणधरों में से प्रथम। चाणक्य
एक विद्वान और चतुर राजनीतिज्ञ ब्राह्मण, जिसका नीति सम्बन्धी लिखा हुआ 'चाणक्य नीति' नामक ग्रन्थ आज भी विश्व प्रसिद्ध है। वह इतना बुद्धिमान और चतुर ब्राह्मण था कि साधनहीन होते हुए भी उसने नन्दराज्य को उखाड़कर चंद्रगुप्त नामक युवक को राजपद पर अधिष्ठित किया। वही इतिहास प्रसिद्ध चंद्रगुप्त मौर्य भारतवर्ष के सबसे शक्तिशाली राजाओं में परिगणित होता है।
चाणक्य का जन्म चणक ग्रामवासी एक विद्वान ब्राह्मण के घर में हुआ। चाणक्य के पिता चणी ब्राह्मण होते हुए भी निर्ग्रन्थ परम्परा के श्रावक थे। उनकी माता भी श्रमणोपासिका थी। जन्म से ही चाणक्य के मुख में बत्तीस दांत थे। एक बार एक जैन आचार्य चणी के घर पर रुके। चणी ने अपने पुत्र का भविष्य आचार्य श्री से पूछा। आचार्य श्री ने फरमाया-जन्म से ही जिस शिशु के मुख में पूरे दांत हों, वह राजा बनता है। पुत्र का भविष्य सुनकर पिता प्रसन्न नहीं हुआ। उसकी मान्यता थी कि राजा मरकर नरक में ... 174 ..
- जैन चरित्र कोश ...