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कारण उसकी विद्याएं क्षीण हो गई थीं। पर उसके हृदय की ईर्ष्या यथावत् थी। वीरमती को जैसे ही यह ज्ञात हुआ कि चंद ने पुनः मानव-तन प्राप्त कर लिया है तो उसका हृदय ईर्ष्या के विष से दग्ध हो गया। वह चंद का वध करने के लिए विमलापुरी पहुंची। उसने चंद पर तलवार का प्रहार किया। परन्तु चंद राजा के अपुण्य क्षीण हो चुके थे। वीरमती का प्रहार व्यर्थ गया। उसके द्वारा फैकी हुई तलवार प्रस्तर से टकराकर उछली और उसी के उदर के पार हो गई। वीरमती की मृत्यु हो गई। ___चंद राजा प्रेमलालच्छी के साथ आभापुरी लौटा। गुणावली से पुनर्मिलन हुआ। शिवकुमार नट की पुत्री शिवमाला से भी उसने विवाह किया। उसके सुशासन में प्रजा में पुनः सुख-समृद्धि छा गई। अनेक वर्षों तक उसने शासन किया। उसके कई योग्य पुत्र हुए। जीवन के उत्तर पक्ष में ज्येष्ठ पुत्र को राज्य देकर चंद ने दीक्षा धारण की और निरतिचार संयम की आराधना कर मोक्ष प्राप्त किया।
-चंद राजा नो रास, श्री मोहन विजय जी कृत, 18वीं शती चंद्रगुप्त मौर्य
वी.नि. की चतुर्थ शताब्दी के पूर्वार्द्ध काल में हुआ भारतवर्ष का एक तेजस्वी सम्राट् । चंद्रगुप्त मौर्य से पहले भारतवर्ष के विशाल भूभाग पर नंदवंश का शासन था। सौ से अधिक वर्षों तक नंदों ने भारत के विशाल क्षेत्र पर शासन किया। नन्दों के साम्राज्य का प्रमुख क्षेत्र मगध रहा और पाटलिपुत्र उनकी राजधानी रही। लम्बे समय तक शासन करने के कारण नन्दों के राज्यसंचालन में शिथिलता आ गई थी। न्याय प्रणाली सुस्त पड़ गई थी और प्रजा का उनसे मोह भंग हो गया था। इस अवस्था में क्षत्रिय-पुत्र चंद्रगुप्त ने विद्वान् ब्राह्मण चाणक्य के दिशानिर्देशन में अपने अपूर्व साहस और अजेय शौर्य के बल पर नन्दवंश को भूलुण्ठित कर मौर्य राजवंश की स्थापना की। ___चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म मयूरग्राम में ई.पू. लगभग 345 में हुआ। मयूर ग्राम में व्रात्य जाति के क्षत्रियों की बहुलता थी। उन लोगों का मूल व्यवसाय मयूर पंखों का था। वहां बहुतायत से मूयरपालन होता था। चंद्रगुप्त ग्राम-प्रमुख क्षत्रिय की पुत्री के पुत्र थे। चंद्रगुप्त जब गर्भ में थे तो उनकी माता को चंद्रपान का दोहद उत्पन्न हुआ था। परन्तु इस असंभव दोहद की पूर्ति के अभाव में ग्राम-प्रमुख की पुत्री कृश बन गई। उधर नन्द साम्राज्य को धूल में मिला देने का स्वप्नद्रष्टा चाणक्य उस ग्राम में आया। वह ग्राम-मुखिया के घर रुका। ग्राम-मुखिया की पुत्री के दोहद की बात उसने जानी। चाणक्य ने कहा, इस कन्या से उत्पन्न होने वाले पुत्र को यदि उसे देने का वचन दिया जाए तो वह दोहद पूर्ण कर सकता है। ग्राम-प्रमुख द्वारा वचन दे दिए जाने पर चाणक्य ने अपने बद्धिकौशल से कन्या का दोहद पर्ण करा दिया। ___कालक्रम से उस कन्या ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम चंद्रगुप्त रखा गया। चंद्रगुप्त जब 8-9 वर्ष का हो गया तो चाणक्य उसे अपने साथ ले गया। चाणक्य ने बालक चंद्रगुप्त की शिक्षा-दीक्षा की उत्तम व्यवस्था की। उसे शस्त्र और शास्त्र विद्याओं में निपुण बनाया। चंद्रगुप्त जब समर्थ युवा हुए तो उन्होंने एक सेना का गठन किया। इस कार्य में उन्हें चाणक्य का दिशानिर्देशन प्राप्त हुआ और उन्होंने कई अन्य वंशों और छोटे-छोटे राजाओं का भी सहयोग लिया।
युवा सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ चाणक्य और चंद्रगुप्त ने पाटलिपुत्र पर आक्रमण किया। पर इस प्रथम आक्रमण में उन्हें घोर पराजय का सामना करना पड़ा। शक्ति संगठन में उन्हें पुनः कई वर्ष लगे और एक वृद्धा से विजय का सरलसूत्र प्राप्त कर उन्होंने पहले मगध साम्राज्य के छोटे-छोटे सीमान्त प्रदेशों को अपने अधीन किया। बाद में पर्वत नामक एक राजा के साथ मिलकर पाटलिपुत्र पर आक्रमण किया। चंद्रगुप्त ... जैन चरित्र कोश ...
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