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गजसिंह ने पांच-पांच राज्यों का कुशलतापूर्वक संचालन किया। उसे पांचों पत्नियों से पांच पुत्र हुए। योग्यवय में पांचों पुत्रों को पांचों राज्यों का शासन अधिकार प्रदान कर गजसिंह ने संयम धारण किया। निरतिचार संयम, आराधना कर उसने अंततः केवलज्ञान प्राप्त किया । सर्वकर्म खपाकर मुनि गजसिंह
मोक्ष को गए ।
गजसुकुमाल
वसुदेव और देवकी के सबसे छोटे पुत्र, त्रिखण्डाधीश वासुदेव श्रीकृष्ण के अनुज और एक ऐसे वीरवर महासाधक, ज़िन्होंने दीक्षा के प्रथम दिन ही अपनी परम मंजिल को प्राप्त कर लिया । अन्तगडसूत्र के पृष्ठों पर गजसुकुमाल का चरित्र चित्रण विस्तृत रूप से हुआ है, जिसका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार से है
देवकी मथुरा के राजा उग्रसेन की बहन थी । देवकी का विवाह महाराज वसुदेव के साथ निश्चित हुआ । विवाह के प्रसंग पर कंस की रानी जीवयशा मदिरापान कर उन्मत्त हो नाचने लगी। जीवयशा तत्कालीन प्रतिवासुदेव जरासंध की पुत्री थी । उसे अपने रूप तथा अपने पिता की शक्ति का बहुत घमण्ड था। उसमें मदिरा-पान आदि कई दुर्गुण थे। अतिमुक्त कुमार मुनि, जो संसार पक्ष में जीवयशा के देवर थे तथा कुमारावस्था में ही मुनि बन गए थे, वहां आ गए। मदिरा से उन्मत्त बनी जीवयशा ने मुनि से विनोद करना शुरू कर दिया। मुनि द्वारा पुनः पुनः समझाने पर भी जब जीवयशा का उन्माद कम न हुआ तो भविष्यद्रष्टा मुनि ने उसका उन्माद उतारने के लिए कहा, जीवयशे ! तुम्हारा यह आमोद अस्थायी है ! जिस देवकी के साथ तुम क्रीड़ा कर रही हो, यह महान और अनन्य आठ पुत्रों को जन्म देगी तथा इसका सातवां पुत्र तुम्हारे पति का वध करेगा !
मुनि की भविष्यवाणी सुनकर जीवयशा का उन्माद उतर गया। उसने अपने पति कंस को मुनि की भविष्यवाणी की बात बताई। कंस भी भयभीत हो गया। इसी भय फलस्वरूप कंस ने देवकी और वसुदेव के विवाह-प्रसंग पर ही उन दोनों को धोखे से बन्दी बना लिया। कारागृह में बन्द देवकी जब-जब पुत्र को जन्म देती तो हरिणगमेषी देव उसके सर्वांग सुन्दर पुत्रों को ले जाकर भद्दिलपुर नगर निवासिनी सुलसा के पास पहुंचा देता और सुलसा के मृत पुत्रों को देवकी के पास पहुंचा देता । इस प्रकार देवकी के प्रथम छह पुत्र सुलसा की गोद में पल-पुसकर बड़े हुए। (देखिए - अनीयसेन)
कृष्ण के रूप में देवकी ने सातवें पुत्र को जन्म दिया। पुण्यवान पुत्र के जन्म से वसुदेव बन्धन-मुक्त हो गए और पहरेदार निद्राधीन हो गए। वसुदेव कृष्ण को अपने मित्र नन्द को दे आए। नन्द और यशोदा के घर में कृष्ण बड़े हुए। बाद में कृष्ण ने कंस का वध कर अपने माता-पिता को कारागृह से मुक्त कराया ।
कालान्तर में श्रीकृष्ण ने समुद्र के किनारे द्वारिका नाम की एक भव्य नगरी बसाई । जरासंध ने श्रीकृष्ण पर आक्रमण किया। श्रीकृष्ण ने जरासंध को मारकर वासुदेव का पद पाया। श्रीकृष्ण के नेतृत्व में यादव साम्राज्य का महान उत्कर्ष हुआ । इसी वंश में अरिहंत अरिष्टनेमि का जन्म हुआ । अरिहंत अरिष्टनेमि ने प्रव्रजित होकर केवलज्ञान प्राप्त कर धर्मतीर्थ का प्रवर्तन किया। हजारों पुरुषों और स्त्रियों ने उनके धर्मसंघ में प्रवेश किया।
अरिहंत अरिष्टनेमि अक्सर द्वारिका नगरी में पधारते थे। एक बार जब भगवान द्वारिका में पधारे तो उनके साथ समान रूपगुण वाले छह अणगार थे। एक दिन पारणे के लिए ये छहों अणगार दो-दो के सिंघाड़े
द्वारिका नगरी में गए। संयोग से तीनों ही सिंघाड़े थोड़ी-थोड़ी देर के अन्तराल से देवकी के महल में गए। देवकी ने केसरिया मोदक मुनियों को भिक्षा में दिए। एक समान रूप, आयु और गुण होने से देवकी के मन • जैन चरित्र कोश •••
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