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खरक ___ महावीरकालीन एक वैद्य, जिसने प्रभु के कानों से ग्वाले द्वारा ठोकी गई कीलें निकाली थीं। (देखिएसोमिल)
-महावीर चरित्र खारवेल (राजा)
वी.नि. की तीसरी-चौथी सदी का एक राजा। महामेघवाहन और भिक्खुराय इन दो उपनामों से भी खारवेल प्रसिद्ध हैं। खारवेल कलिंग देश के राजा थे। हैहयवंश के गणाध्यक्ष महाराज चेटक के वे वंशज थे। वैशाली विध्वंस के पश्चात महाराज चेटक का पुत्र शोभनराय अपने श्वसुर कलिंग नरेश सुलोचन के पास चला गया। सुलोचन के कोई पुत्र नहीं था। उसने शोभनराय को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।शोभनराय की दसवीं पीढ़ी में खारवेल हुए। खारवेल जैन धर्म के प्रति पूर्णरूप से समर्पित थे।
खारवेल के कलिंग के सिंहासन पर आसीन होने के आठवें वर्ष में, मौर्यवंश के राजा बृहद्रथ को मारकर मगध शासन पर आसीन होने वाले पुष्यमित्र ने जैनों और बौद्धों पर अत्याचार प्रारंभ कर दिए। स्वधर्मियों पर आए इस संकट की सूचना पाकर खारवेल ने मगधनरेश पुष्यमित्र पर आक्रमण किया। खारवेल ने अपने शासनकाल के आठवें और बारहवें वर्ष में पुष्यमित्र पर आक्रमण किया और उसे पराजित कर जैन शासन की रक्षा की।
- महाराज खारवेल द्वारा किया गया दूसरा महनीय कार्य यह था-उन्होंने कुमारगिरि पर्वत पर एक बृहद् श्रमणसम्मेलन का आह्वान किया और द्वादशवर्षीय अकाल में विलुप्त हुई श्रुतराशि की सुरक्षा के हित श्रुत वाचना कराई। भोजपत्रों और ताड़पत्रों पर सर्वसम्मत द्वादशांगी का लेखन कराया गया। महाराज खारवेल द्वारा आहूत उस महासम्मेलन में जिनकल्प तुल्य साधना करने वाले आर्य बलिस्सह प्रमुख 200 श्रमण, स्थविरकल्पी आर्य सुस्थित प्रमुख 300 श्रमण, आर्या पोइणी प्रमुख 300 आर्याएं, 700 श्रावक और 700 श्राविकाओं ने भाग लिया था। यह महासम्मेलन वी. नि. के 328-329वें वर्ष में हुआ। वी. नि. 330 में जिनशासन के परमभक्त महाराज खारवेल का स्वर्गवास हुआ।
-हाथी गुफा के शिलालेख/हिमवन्त स्थविरावलि खिमऋषि
चैत्यवासी परम्परा में सांडेरागच्छ के आचार्य यशोभद्र सूरि के शिष्य। खिमऋषि अपने नाम के अनुरूप क्षमाशील और उग्र तपस्वी साधक थे। गृहवास में उनका नाम बोधा था। चित्तौड़ के निकटवर्ती बड़ग्राम के वे निवासी थे। जाति से वणिक थे। अतीव निर्धनावस्था में वे जीवन जी रहे थे। आचार्य यशोभद्र के उपदेश से प्रतिबोधित होकर उन्होंने मुनिदीक्षा धारण की। गुर्वाज्ञा से एकान्त स्थानों शून्यागारों, वनों और श्मशानों में रहकर वे ध्यान और तप करते। परीषहों और उपसर्गों में समभाव धारण करने से वे जगत में खिमऋषि नाम से विख्यात हुए।
किसी समय खिमऋषि अवन्ती नगरी के निकटवर्ती ग्राम घामनोद के बाह्यभाग में पधारे। वहां वे उग्र तप-साधना में लीन हो गए। ग्राम के ब्राह्मण कुल के उद्दण्ड बालक उस स्थान पर आए और ध्यानस्थ मुनि को नानाविध कष्ट देने लगे। मुनि ध्यान में अविचलित रहे। ब्राह्मण बालकों ने उग्र बनकर मुनि पर पत्थर बरसाए, दण्ड प्रहार किए। इस पर भी मुनि अपने ध्यान से विचलित नहीं हुए और न ही उन्होंने बालकों पर ... 128 ..
- जैन चरित्र कोश ...