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भाई-केशव और हंस क्षुधा से पीड़ित होते रहे। छठे दिन भी पुत्रों को हठ पर डटे देखकर यशोधर ने अपना निर्णय सुना दिया कि यदि उन्हें रात्रि-भोजन अस्वीकार है तो उनके लिए उसके घर में कोई स्थान नहीं है।
पिता के इस कठोर निर्णय के समक्ष हंस का संकल्प चलित हो गया। पर केशव का संकल्प निरंतर सुदृढ़ बना रहा। वह घर छोड़कर निकल गया। जिस रात्रि में उसने घर छोड़ा, उसी रात्रि में एक देवता ने उसकी दृढ़धर्मिता की कठिन परीक्षा ली। पर देव भी केशव को चलित नहीं कर पाया। इस पर प्रसन्न हुआ। उसने केशव को वरदान दिया कि जो भी तुम्हारे चरणांगुष्ठ को धो कर उस जल
॥ अपने शरीर पर छींटे देगा, वह रोगमुक्त हो जाएगा। साथ ही देव ने कहा कि चिंता के क्षण में वह जैसा चिंतन करेगा. वैसे ही फल की उसे प्राप्ति होगी। इस प्रकार दो वरदान देकर देव ने केशव को साकेत नगर के उद्यान में पहुंचा दिया और स्वयं अपने स्थान पर चला गया। उद्यान में आचार्य श्री धर्मदेव धर्मोपदेश दे रहे थे। केशव भी उपदेश सुनने लगा। उपदेश समाप्त होने पर नगर नरेश धनंजय ने आचार्य श्री से पूछा, भगवन! रात्रि में मैंने स्वप्न में देखा कि आपकी प्रवचन परिषद् में एक सुयोग्य व्यक्ति आएगा, जो मेरे राज्य को अच्छी तरह संभालेगा। कृपा फरमाएं कि वह सुयोग्य व्यक्ति कौन है, ताकि उसे राजगद्दी प्रदान करके मैं प्रव्रजित हो सकूँ!
आचार्य श्री अतिशय ज्ञानी थे। उन्होंने केशव की ओर इंगित करते हुए कहा कि यही वह सुयोग्य व्यक्ति है, जो अच्छी तरह से तुम्हारे राज्य का संचालन करेगा। राजा ने केशव का स्वागत-सत्कार किया और उसे राजपद प्रदान कर प्रव्रज्या धारण कर ली। केशव ने निरपेक्ष भाव से सुशासन की स्थापना की।
एक दिन केशव अपने महल के गवाक्ष में बैठा हुआ नगर की शोभा देख रहा था तो उसकी दृष्टि एक ऐसे व्यक्ति पर पड़ी, जिसके वस्त्र फट चुके थे और साक्षात् दारिद्र्य की प्रतिमा बनकर राजमार्ग पर चला जा रहा था। केशव ने निकट आने पर उस व्यक्ति को पहचान लिया, क्योंकि वह उसका पिता यशोधर ही था। केशव ने दौड़कर पिता को प्रणाम किया और उसे महल में ले आया। पिता की सेवा-भक्ति की और उसकी उक्त दशा के बारे में पूछा। यशोधर ने बताया, पुत्र ! जिस रात्रि में तुमने घर छोड़ा, उसी रात्रि में हंस भोजन करने बैठा था, उसके भोजन में घायल सर्प के रक्त की बूंदें गिर गईं और उस भोजन के करने से उसके शरीर में कुष्ठ उत्पन्न हो गया। तुम्हारा भाई अंतिम सांसें गिन रहा है। मुझे मेरी भूल का अहसास हो गया और मैं तुम्हारी खोज में भटकते-भटकते यहां आया हूं।
- भाई की दशा सुनकर केशव विह्वल हो गया। देव ने तत्काल केशव को हंस के पास पहुंचा दिया। केशव ने अपना पादांगुष्ठ धोकर जल हंस को पिलाया और उसे स्वस्थ बना दिया। केशव ने हजारों लोगों के रोगों का हरण किया। सुदीर्घ काल तक राज्य में रामराज्य को साकार करते हुए केशव ने शासन किया और सद्गति का अधिकार पाया।
-वर्धमान देशना 1/6 (ख) केशव
लोकसेवा में संलग्न एक श्रेष्ठीपुत्र, जो भवान्तर में भगवान ऋषभदेव के पौत्र श्रेयांसकुमार के रूप में जन्मा था। केशी
वीतभय नगर के स्वामी महाराज उदायन का भानजा। उदायन ने दीक्षित होने से पूर्व केशी को अपना सिंहासन प्रदान किया था। एक बार राजर्षि उदायन वीतभय नगर पधारे तो संभ्रमित केशी ने इस विचार से .... जैन चरित्र कोश ...
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