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कुश
श्रीराम और सीता का पुत्र । कुश बचपन से ही बहुत शूरवीर था । अपने भाई लव के साथ मिलकर उसने किशोरावस्था में ही त्रिखण्डजयी अयोध्या की सेना को धूल चटा दी थी। (देखिए - सीता)
कुसुमपाल
राजगृह नगर का एक धनी श्रेष्ठी । (देखिए धन्य जी)
(क) कुसुमवती
देवपुरा नामक ग्राम के वणिक विनोदीलाल की पुत्री । कुसुमवती चार भाइयों की इकलौती बहन थी । वणिक ने अपनी पुत्री का लग्न निकटस्थ नगर कनकपुर के श्रेष्ठी ऋषभदास के पुत्र हीरालाल से कर दिया । परंतु विवाह से पूर्व ही ऋषभदास और उसकी पत्नी का देहान्त हो गया। इतना ही नहीं, लक्ष्मी भी उस घर से रूठ गई । व्यापार तो चौपट हुआ ही, हीरालाल से उसका घर भी लेनदारों ने कब्जा लिया। समय के पलटते ही विनोदीलाल ने भी हीरालाल को भुला दिया और वह अपनी पुत्री के लिए अन्य वर की तलाश करने लगा। पर कनकवती को पिता का यह व्यवहार उचित नहीं लगा। उसने पिता से इसका विरोध किया और स्पष्ट किया कि उसका लग्न जहां किया गया है, वहीं उसका विवाह किया जाना चाहिए। आखिर पुत्री की जिद के समक्ष पिता को झुकना पड़ा। उसने पुत्री का विवाह हीरालाल से कर दिया पर प्रीतिदान में फूटी कौड़ी भी नहीं दी । कुसुमवती को उसकी आवश्यकता भी नहीं थी ।
कनकपुर आकर कुसुमवती अपने पति के साथ तृण कुटीर में रहने लगी । कुसुमवती देव, गुरु और धर्म के प्रति सुदृढ़ आस्थावान थी । उसने हीरालाल को भी धर्म का मर्म समझाया । हीरालाल धर्मध्यान के प्रति समर्पित हो गया । वह जंगल से लकड़ियां काटकर लाता और उससे अर्जित धन से दोनों उदरपोषण कर आनन्द मानते। उनके कुटीर के पीछे बिना किसी के स्वामित्व की भूमि थी । कुसुमवती ने पति को प्रेरित किया कि उस भूमि पर कृषि करने से उनके भाग्य का अवश्यमेव उदय होगा । भूमि पथरीली थी। पति-पत्नी दोनों जमीन को खोदकर उर्वरा बनाने के श्रम में जुट गए। उसी क्रम में उन्हें वहां पर गड़ा हुआ प्रभूत स्वर्ण प्राप्त हुआ। उससे कुसुमवती और हीरालाल का भाग्य बदल गया । झोंपड़ी का स्थान विशाल भवन ने ले लिया। कुसुमवती के दिशा-निर्देशन में हीरालाल ने व्यापार शुरू किया। उसने दिन दोगुनी और रात चौगुनी उन्नति की। शीघ्र ही वह नगर का सबसे समृद्ध श्रेष्ठी बन गया। उसने कुसुमवती के निर्देश पर कम से कम दो बार राजा के प्राणों की रक्षा की। प्रथम बार राजा ने उसे नगरसेठ बनाया और दूसरी बार उसे आधा राज्य दिया ।
एक बार एक म्लेच्छ राजा ने कनकपुर पर आक्रमण किया। कुसुमवती के दिशा-निर्देश पर हीरालाल ने रणजौहर दिखाए और म्लेच्छ राजा को परास्त कर दिया । उसका यश चतुर्दिक् वर्धमान हुआ ।
कुसुमवती और हीरालाल ने धर्मध्यानपूर्वक जीवन बिताया। जीवन के उत्तरार्ध पक्ष में दोनों ने संयम का पालन कर मोक्ष प्राप्त किया ।
(ख) कुसुमवती
कुसुमपुर नगर की एक श्रेष्ठी पुत्री, जो परम बुद्धिमती कन्या थी । कुसुमवती के पिता का व्यापार विदेशों में फैला हुआ था। एक बार जब पिता व्यापारार्थ विदेश गए हुए थे तो युवा कुसुमवती का चित्त चंचल हो गया। उसने सांकेतिक भाषा में एक पत्र पर कुछ वस्तुएं लिखीं और दासी को उन वस्तुओं को *** जैन चरित्र कोश
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