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राजा के चुनाव के लिए बुद्धिमान मंत्रियों ने हस्तिनी, अश्व आदि पंच दिव्य सजाए और उनके पीछे-पीछे चलने लगे। करकण्डु के पास पहुंचकर हथिनी ने उसके गले में पंचवर्णी पुष्पों की माला डाल दी। घोड़े ने भी हिनहिना कर अपनी सहमति प्रकट की। इस प्रकार करकण्डु को कलिंग देश का राजा मान लिया गया। कुछ लोगों ने इस बात का विरोध किया कि एक चाण्डाल-पुत्र राजा कैसे हो सकता है। इस पर करकण्डु ने राजदण्ड को घुमाते हुए कहा कि यह राज्य उसने भिक्षा में नहीं पाया है, इसकी सुरक्षा वह अपने भुजदण्डों से करेगा। करकण्डु के इस पराक्रमी स्वरूप को देखकर विरोधियों के विरोध पस्त हो गए। करकण्डु एक प्रतापी राजा बना।
उधर उस ब्राह्मण को ज्ञात हो गया कि करकण्डु कलिंग का राजा बन गया है। वह उसके पास पहुंचा और वचनानुसार उससे उसी गांव की याचना की, जिसमें वह निवास करता था। करकण्डु ने 'तथाऽस्तु' शब्द के साथ उसकी याचना को मान प्रदान किया। परन्तु उसे ज्ञात हुआ कि वह गांव तो अंगदेश के राजा दधिवाहन के राज्य का अंग है। करकण्डु ने दधिवाहन के पास दूत भेजकर कहलवाया कि इस ब्राह्मण को इच्छित गांव दे दीजिए, बदले में कलिंग राज्य की उतनी ही अथवा दोगुनी भूमि ले लीजिए। दधिवाहन ने उपहास और उपेक्षा से करकण्डु का प्रस्ताव यह कहते हुए ठुकरा दिया कि अदला-बदली का कार्य बनियों का होता है, क्षत्रियों का नहीं। क्षत्रिय इच्छित वस्तु की याचना नहीं करते, वे तो अपने भुजबल से उसे छीन लिया करते हैं।
दधिवाहन की इस सीधी चेतावनी से करकण्डु का स्वाभिमान घायल हो गया। युद्ध की ठन गई। अंग और कलिंग की सेनाएं आमने-सामने आ गईं। उधर साध्वी पद्मावती को ज्ञात हुआ कि पिता और पुत्र रणभूमि में आमने-सामने आ डटे हैं। वह अपनी गुरुणी की आज्ञा लेकर रणभूमि में पहुंची और पिता-पुत्र के मध्य का रहस्य स्पष्ट कर दिया। पिता और पुत्र गले मिले। पूरी कथा जानकर और कर्मलीला की विचित्रता पर चिन्तन करते हुए दधिवाहन अपना राज्य भी करकण्डु को देकर दीक्षित हो गए। करकण्डु अंग और कलिंग के विशाल साम्राज्य का स्वामी बन गया।
__करकण्डु की एक विशाल गौशाला थी। गायों के प्रति उसमें विशेष प्रेमभाव था। स्वयं भी वह गौशाला में निरीक्षण के लिए जाता रहता था। एक दिन उसने एक दुग्ध धवल नवजात बछड़े को देखा। उसे वह बहुत प्रिय लगा। उसने गौशाला निरीक्षक को आदेश दिया कि उक्त बछड़े का विशेष लालन-पालन हो। करकण्डु जब भी गौशाला जाता, उस बछड़े के साथ खेलता। बछड़ा भी उसे देखकर कुलांचे भरता। कुछ ही समय में वह बछड़ा युवा और बलिष्ठ बैल बन गया। वह साधिकार गौशाला में स्वच्छन्द विचरण करता था।
एक बार कई वर्षों तक करकण्डु गौशाला नहीं जा सका। जब गया तो उसने अपने प्रियपात्र बैल के बारे में पूछा। दूर कोने में एक हड्डियों के ढांचे मात्र बैल की ओर इंगित करके बताया गया कि वही है वह बैल। उस पर मक्खियां भिनभिना रही थीं और उसमें इतनी शक्ति शेष न थी कि वह मक्खियों को उड़ा सके। उसे देखकर करकण्डु को एक झटका-सा लगा। उसकी उस स्थिति के बारे में पूछने पर निरीक्षक ने बताया कि वृद्धावस्था के कारण उसकी वैसी स्थिति हुई है।यौवन में छिपे बुढ़ापे और बल में छिपे अबल को निहार कर करकण्डु चिन्तनशील हो गया कि इस जगत में सब कुछ परिवर्तनशील है, अस्थिर है। इससे पूर्व कि परिवर्तन का वह नियम मुझ पर घटित हो, मुझे परभव की तैयारी कर लेनी चाहिए। ___ करकण्डु ने राजपाट ठुकराकर मुनिव्रत धारण कर लिया। प्रत्येकबुद्ध बनकर वे पृथ्वी पर विचरण करने लगे। विशुद्ध संयम की आराधना की। तप से पूर्वबद्ध कर्मों को जीर्ण-शीर्ण कर केवलज्ञान पाया। इस प्रकार प्रत्येकबुद्ध करकण्डु ने सिद्धत्व प्राप्त किया। -उत्तराध्ययन, अध्ययन 184 आवश्यक नियुक्ति 1911 ... जैन चरित्र कोश ..
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