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प्रवाह चलते-चलते गृहीत-नियम पर आकर ठहर गया। उसे आचार्य श्री के शब्द स्मरण हो आए.....छोटे-से छोटे नियम का भी श्रद्धा से पालन किया जाए तो उसका भी महान फल होता है। कमल का चिन्तन ऊर्ध्वमुखी हो गया, यदि मैं आचार्य श्री द्वारा निर्दिष्ट नियमों का श्रद्धापूर्वक पालन करूं उनका कितना महान फल होगा, उसकी तो कल्पना ही संभव नहीं है। इसी चिन्तन में उसने रात्रि बिता दी। दूसरे दिन सुबह उसने पिता को प्रणाम किया और बोला, पिताजी ! मैं आचार्य श्री के दर्शन करना चाहता हूं । पुत्र के उक्त वचन सुनकर पिता को मानो स्वर्ग का साम्राज्य मिल गया हो ! कमल पिता के साथ आचार्य श्री के पास पहुंचा। उसने आचार्य श्री से प्रार्थना की कि उसके लिए जो-जो उचित हैं, वे नियम उसे करा दें । आचार्य श्री ने कमल को सप्तकुव्यसनों का त्याग कराया और श्रावक के व्रत प्रदान किए। कमल का जीवन आमूलचूल बदल गया । दृढ़तापूर्वक श्रावकधर्म का पालन करते हुए वह सद्गति का अधिकारी बना ।
- विनोद कथा संग्रह, पत्र 1 ( राजशेखर सूरि रचित, 14वीं शती)
(क) कमलप्रभा (देखिए-श्रीपाल ) (ख) कमलप्रभा (आर्या )
प्रभु पार्श्व के धर्मतीर्थ में हुई कमलप्रभा आर्या का समग्र परिचय कमला आर्या के समान है । (देखिए - कमला -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि. श्रु., वर्ग 5 अ. 2
आय)
(क) कमलश्री
हस्तिनापुर नगर के नगरसेठ धनसार की पतिव्रता पत्नी । (देखिए-भविष्यदत्त)
(ख) कमलश्री
अवन्ती नगरी के धन सेठ की पत्नी । (देखिए - अतूंकारी भट्टा ) कमल सेठ
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विजयपुर नगर का रहने वाला एक सत्यवादी और धर्मात्मा सेठ । कमलसेठ एक जैन श्रावक था । उसे प्राणों से अधिक प्रण प्रिय थे। उसका एक पुत्र था, जिसका नाम विमल था और वह स्वच्छन्दाचारी, असत्यभाषी तथा धूर्त था। पिता ने पुत्र को पुनः पुनः समझाने और सत्पथ पर लाने का प्रयत्न किया, परन्तु विमल को अपने पिता के आदर्श स्वीकार नहीं थे। वह धन को ही सफलता की कुंजी और जीवन का श्रेयस् मानता था। धन के लिए वह दूसरों को ठगने के लिए सदैव तत्पर रहता था ।
एक बार विमल व्यापार के लिए विदेश गया और धूर्तकला द्वारा पर्याप्त धन अर्जित करके लौटा । उसी नगर का एक अन्य सेठ सागरदत्त भी उसी दिन पर्याप्त धनार्जन के साथ विदेश से लौटा। विमल और सागर विदेश में भी कई स्थानों पर साथ-साथ रहे थे तथा विमल ने धूर्तकला द्वारा सागर को कई प्रसंगों पर ठगा था। विजयपुर पहुंचकर विमल ने सागर के साथ आग्रहपूर्वक कोई शर्त लगाई। विमल को विश्वास था कि वह शर्त जीतेगा और सागरदत्त का पूरा धन हड़प कर लेगा। पर वह शर्त हार गया और उसके पूरे धन पर सागरदत्त का अधिकार हो गया। यह शर्त कमल सेठ की मौजूदगी में ही तय हुई थी । कमल सेठ नगर के प्रामाणिक व्यक्ति थे। उनके कथन को राजा भी प्रामाणिक मानता था । विमल को विश्वास था कि उसका पिता उसी का पक्ष लेगा । इसी विश्वास के आधार पर विमल ने सागरदत्त के विरुद्ध राजा के समक्ष शिकायत ••• जैन चरित्र कोश -
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