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________________ M EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE FO जहां हिंसा: वहाँ अधर्म (ज्ञानी की मान्यता) $$$$$$$$$$$$$$$$$$$ {150) किं जीव-दया धम्मो जण्णे हिंसा वि होदि किं धम्मो। इच्चेवमादि-संका तदकरणं जाण णिस्संका॥ दय-भावो वि य धम्मो हिंसा-भावो ण भण्णदे धम्मो। इदि संदेहाभावो हिस्संका णिम्मला होदि॥ ___ (स्वा. कार्ति. 12/414-15) क्या जीव-दया धर्म है अथवा यज्ञ में होने वाली हिंसा में धर्म है, इत्यादि संदेह को ॥ शंका कहते हैं। और उसका न करना निःशंका है। 'दयां भाव ही धर्म है, हिंसा भाव को धर्म 卐 नहीं कहते' इस प्रकार निश्चय करके सन्देह का न होना ही निर्मल निःशंकित गुण है। {151) अण्णो ण हवदि धम्मो हिंसा सुहुमा वि जत्थत्थि। (स्वा. कार्ति. 12/405) (क्षमा आदि ही धर्म हैं। इनको छोड़ कर )जिसमें सूक्ष्म भी हिंसा होती है, वह ॐ धर्म नहीं है। 115 听听听听听听听听听听听听听听听听明 देव-गुरूण णिमित्तं हिंसा-सहिदो वि होदि जदि धम्मो। हिंसा-रहिदो धम्मो इदि जिण-वयणं हवे अलियं॥ (स्वा. कार्ति. 12/407) यदि देव और गुरु के निमित्त से हिंसा का आरम्भ करना भी धर्म हो तो जिनेन्द्र भगवान का यह कहना कि 'धर्म हिंसा से रहित है' असत्य हो जायेगा। (153) भय-लज्जा-लाहादो हिंसारंभो ण मण्णदे धम्मो। जो जिण-वयणे लीणो अमूढ-दिट्ठी हवे सो दु॥ ___ (स्वा. कार्ति. 12/418) 卐 भय, लज्जा अथवा लालच के वशीभूत होकर जो हिंसा-मूलक आरम्भ को धर्म नहीं मानता, जिनवचन में लीन उस पुरुष के 'अमूढ़ दृष्टि' अंग होता है। REEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEET अहिंसा-विश्वकोश/671
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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