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________________ 卐 卐卐卐! (ज्ञा. 8 /20/492) 卐 कुलक्रम से जो हिंसा चली आई है वह उस कुल को नाश करने के लिये ही कही ! गई है; तथा विघ्न की शान्ति के लिए जो हिंसा की जाती है, वह भी विघ्नसमूह को बुलाने के लिये ही है । 馬 卐卐卐卐卐卐卐卐卐 {139} कुलक्रमागता हिंसा कुलनाशाय कीर्तिता । कृता च विघ्नशान्त्यर्थं विघ्नौघायैव जायते ॥ 编 (140) विहाय धर्मं शमशीललांछितं दयावहं भूतहितं गुणाकरम् । मदोद्धता अक्षकषायवञ्चिता दिशन्ति हिंसामपि दुःखशान्तये ॥ [कोई कहे कि हमारे कुल में देवी आदि का पूजन चला आता है, अतएव हम बकरे व भैंसे का घात कर देवी को चढ़ाते हैं और इसी से कुल देवी को संतुष्ट हुई मानते हैं और ऐसा करने से कुलदेवी कुल की वृद्धि करती है। इस प्रकार श्रद्धान करके जो बकरे आदि की हिंसा की जाती है वह जैन मतानुसार कुलनाश के लिए ही होती है, कुलवृद्धि के लिए कदापि नहीं। इसी प्रकार, कोई-कोई अज्ञानी विघ्न- शान्त्यर्थ हिंसा करते हैं और यज्ञ कराते हैं, उनको भी उक्त हिंसा-पूर्ण यज्ञ से उलटा विघ्न ही होता है और उनका कभी कल्याण नहीं हो सकता है ।] 卐 (ST. 8/27/499) ! ही जिसका चिह्न है, ऐसे दया-धर्म को छोड़ कर, दुःख की शांति हेतु 'हिंसा' को वे पुरुष ही 'धर्म' कहते हैं, जो गर्व से उद्धत होते हैं और इंद्रियों के विषयों से तथा (रागादि) कषायों से ठगे गये हैं (अर्थात् उनके वशीभूत हैं) । (141) देवतातिथिपित्रर्थं मन्त्रौषधभयाय वा । न हिंस्यात्प्राणिनः सर्वानहिंसा नाम तद्व्रतम् ॥ जो जीव-हितकारी अनेकानेक गुणों का सागर है, मंदकषाय व उपशम रूप शील ń$$$$$$$$$$$$$$$$$垢$$$$$$$$$$$$$ [ जैन संस्कृति खण्ड /64 卐 के लिए, अथवा भय से सब प्राणियों की हिंसा नहीं करनी चाहिए। इस अहिंसकता के नियम -धारण को अहिंसाव्रत कहते हैं । ( उपासका 26/320) देवता के लिए, अतिथि के लिए, पितरों के लिए, मंत्र की सिद्धि के लिए, औषधि 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 卐 卐 卐 筑 筑 卐
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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