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________________ E明明明明明明明明明 FREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEng ॐ प्रकार पूछा- "आर्यों! हम किस कारण त्रिविध त्रिविध असंयत, अविरत यावत् : एकान्तबाल हैं?" (प्रत्युत्तर-) तब स्थविर भगवन्तों ने उन अत्यतीथिकों से यो कहा- "आर्यों! 卐 तुम गमन करते हुए पृथ्वीकायिक जीवों को दबाते हो, यावत् मार देते हो। इसलिए ॐ पृथ्वीकायिक जीवों को दबाते हुए, यावत् मारते हुए तुम त्रिविध-त्रिविध असंयत, अविरत यावत् एकान्तबाल हो।" 听听听听听听听听听听 [विवेचन-पूर्व चर्चा में निरुत्तर अन्यतीर्थिकों ने पुनः भ्रान्तिवश स्थविरों पर आक्षेप किया कि आप लोग 卐ही असंयत यावत् एकान्तबाल हैं, क्योंकि आप गमनागमन करते समय पृथ्वीकायिक जीवों की विविधरूप से हिंसा 卐 करते हैं, किन्तु सुलझे हुए विचारों के निर्ग्रन्थ स्थविरों ने धैर्यपूर्वक उनकी इस भ्रान्ति का निराकरण किया कि हम ॐ लोग, काय, योग और ऋत के लिए बहुत ही यतनापूर्वक गमनागमन करते हैं, किसी भी जीव की किसी भी रूप में 卐 हिंसा नहीं करते। 听听听听听听 तए णं ते अन्नउत्थिया ते थेरे भगवंते एवं वयासी- तुब्भे णं अजो! रीयं मरीयमाणा पुढविं पेच्चेह अभिहणह वत्तेह लेसेह संघाएह संघट्टेह परितावेह किलामेह उवद्दवेह, तए णं तुब्भे पुढविं पेच्चेमाणा जाव उवद्दवेमाणा तिविहं तिविहेणं ॐ असंजयअविरय जाव एगंतबाला यावि भवह। (व्या. प्र. 8/7/18) [आक्षेप]- तब उन अन्यतीर्थिकों ने स्थविर भगवन्तों से यों कहा- "आर्यों! 卐 तुम गमन करते हुए पृथ्वीकायिक जीवों को दबाते (आक्रान्त करते) हो, उन्हें हनन करते हो, पादाभिघात करते हो, उन्हें भूमि के साथ शृिष्ट (संघर्षित) करते (टकराते) हो, उन्हें । एक दूसरे के ऊपर इकट्ठा करते हो, जोर से स्पर्श करते हो, उन्हें परितापित करते हो, म उन्हें मारणान्तिक कष्ट देते हो, और उपद्रवित करते-मारते हो। इस प्रकार पृथ्वीकायिक ॐ जीवों को दबाते हुए यावत् मारते हुए तुम त्रिविध-त्रिविध रूप से असंयत, अविरत यावत् एकान्तबाल हो।" ~~~~~~~~~叩叩叩叩叩叩叩~~~~~~~~~明 卐y ALELELELELELELELELELEUCLEUELELELELELELEUCLEUEUEUEUEUEUEUEUEUCLC תבכתבהפתכתבתכתפתפתפתכתבתכתבתבכתבהפתפתפתפתפתפתבחבתפהפיכתככתב ת अहिंसा-विश्वकोश/591
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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