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________________ い~弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱 FEENA {120) अजोगरूवं इह संजयाणं पावं तु पाणाण पसज्झ काउं। अबोहिए दोण्ह वितं असाहु, वयंति ज़े यावि पडिस्सुणंति ।। उ8 अहे य तिरियं दिसासु, विण्णाय लिंगं तस-थावराणं । भूयाभिसंकाए दुगुंछमाणे, वदे करेज्जा व कुओ विहऽत्थी॥ पुरिसे ति विण्णत्ति ण एवमत्थि, अणारिए से पुरिसे तहा हु। को संभवो? पिन्नगपिंडियाए, वाया वि एसा वुइया असच्चा॥ (सू.कृ. 2/6/816-818) (आर्द्रक मुनि ने बौद्ध भिक्षुओं को प्रत्युत्तर दिया-) आपके इस शाक्यमत में है ॐ पूर्वोक्त सिद्धान्त संयमियों के लिए अनुचित रूप है। प्राणियों का (जानबूझ कर) घात करने पर भी पाप नहीं होता, जो ऐसा कहते हैं और जो सुनते या मान लेते हैं; दोनों के # लिए अबोधिलाभ का कारण है। 'ऊंची, नीची और तिरछी दिशाओं में त्रस और स्थावर 卐 जीवों के अस्तित्व का लिंग (हेतु या चिह्न) जान कर जीव-हिंसा की आशंका से विवेकी ॥ * पुरुष हिंसा से घृणा करता हुआ विचार कर बोले या कार्य करे तो उसे पाप-दोष कैसे हो .. सकता है?' खली के पिण्ड में पुरुष-बुद्धि तो मूर्ख को भी नहीं होती। अतः जो पुरुष ) खली के पिण्ड में पुरुष-बुद्धि अथवा पुरुष में खली के पिण्ड की बुद्धि रखता है, वह ' 卐 अनार्य है। खली के पिण्ड में पुरुष की बुद्धि कैसे सम्भव है? अत: आपके द्वारा कही हुई ॐ यह (वाणी) भी असत्य है। 明明明明明明明明明明明 _{121}. थूलं उरन्भं इह मारियाणं, उद्दिट्ठभत्तं च पकप्पइत्ता। तं लोणतेल्लेण उवक्खडेत्ता, सपिप्पलीयं पकरेंति मंसं॥ तं भुंजमाणा पिसितं पभूतं, न उवलिप्पामो वयं रएणं। इच्चेवमाहंसु अणज्जधम्मा, अणारिया बाल रसेसु गिद्धा॥ ___(सू.कृ. 2/6/823-824) आपके मत में बुद्धानुयायी जन एक बड़े स्थूल भेड़े को मार कर उसे बौद्ध ॐ भिक्षुओं के भोजन के उद्देश्य से कल्पित कर (बना कर) उस (भेड़ के मांस) को नमक और तेल के साथ पकाते हैं, फिर पिप्पली अदि द्रव्यों (मसालों) से बघार कर तैयार करते हैं। (यह मांस बौद्ध भिक्षुओं के भोजन के योग्य समझा जाता है, यही आपके आहार-ग्रहण की रीति है।) BEEEEEEEEEEEEEEEN अहिंसा-विश्वकोश।55]
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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