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________________ 名 Ā$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$花 卐卐卐 高 (तात्पर्य यह है कि लोगों की यह भ्रान्त धारणा है कि दुःखी जीव को मारना अनुचित कार्य उचित ही है, क्योंकि दुःखी जीव को मार देने से उसे दुःख से मुक्ति मिलती है। वास्तव में दुःखी हो या सुखी, उसे कोई रागादि-वश मारे तो हिंसा दोष लगेगा ही- यह स्पष्ट जैन मान्यता है।) ● हिंसाः सुखी जीव की भी अगान्य (108) कृच्छ्रेण सुखावाप्तिर्भवन्ति सुखिनो हताः सुखिन एव । इति तर्कमण्डलाग्रः सुखिनां घाताय नादेयः ॥ 'सुख की प्राप्ति कष्ट से होती है, इसलिये मारे हुये सुखी जीव परलोक में सुखी होंगे'- ऐसी कुतर्करूपी तलवार को सुखी जीवों के घात हेतु अंगीकार नहीं करनी चाहिये। (तात्पर्य यह है कि सुख की प्राप्ति कष्ट के बाद होती है, अतः किसी सुखी जीव को मार ( पुरु. 4/50/86) ! दिया जाय तो भले ही उसे शारीरिक/मानसिक कष्ट हो, अन्त में परलोक में उसे सुख प्राप्त 卐 होगा - यह एक भ्रान्त धारणा या कुतर्क है। जैन मान्यता यह है कि जीव को सुख-दुःख की प्राप्ति तो उस के अपने शुभाशुभ कर्मों पर आधारित है । उक्त कुतर्क के आधार पर जीव-घात करना पाप ही होगा ।) ● हिंसाः समाधिस्थ की धर्म-संगत नहीं (109) उपलब्धिसुगतिसाधनसमाधिसारस्य भूयसोऽभ्यासात् । स्वगुरोः शिष्येण शिरो न कर्त्तनीयं सुधर्ममभिलषता ॥ ( पुरु. 4/51/87) अधिक अभ्यास द्वारा ज्ञान और सुगति की प्राप्ति में कारणभूत समाधि के सार को प्राप्त करने वाले (अर्थात् समाधिस्थ) अपने गुरु का, श्रेष्ठ धर्म के अभिलाषी शिष्य द्वारा, मस्तक काटना उचित नहीं है। (तात्पर्य यह है कि कोई समाधिस्थ व्यक्ति मुक्ति की ओर अग्रसर है। देह में प्राण जब तक रहेंगे, वह पूर्णत: मुक्त न नहीं हो पाएगा। अत: उसे मार दिया जाय तो उसे मुक्ति मिल जाएगी और सुख प्राप्त होगा। उक्त मान्यता भी मात्र अज्ञानमयी धारणा है। इस धारणा के आधार पर समाधिस्थ गुरु का मस्तक काट कर शिष्य 'धर्म' माने, तो यह अनुचित है।) 卐卐卐卐卐卐卐卐 अहिंसा - विश्वकोश /49/ $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 卐 卐 卐 卐 筆
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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