SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ LELCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLELELELELELELELELCLCLCLCLCLCLCLCLEUCLCLC 1 (104) $明明明明明明明明明明明明明 明明明明明明 [2] से केणटेणं भंते! एवं वुच्चई 'सव्वपाणेहिं जाव सिय दुपच्चक्खातं 卐 भवति?' गोतमा! जस्स णं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं 'पच्चक्खायं' इति वदमाणस्स मणो एवं अभिसमन्नागतं भवति इमे जीवा इमे अजीवा, इमे तसा, इमे थावरा' तस्स णं 卐 सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं 'पच्चक्खायं' इति वदमाणस्स नो सुपच्चक्खायं भवति, दुपच्चक्खायं भवति। एवं खलु से दुपच्चक्खाई सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं 'पच्चक्खायं' इति वदमाणो नो सच्चं भासं भासति, मोसं भासं भासइ, एवं खलु से 卐 मुसावाती सव्वपाणे हिं जाव सव्वसत्ते हिं तिविहं तिविहे णं॥ अस्संजयविरयपडिहयपच्चखायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबाले यावि भवति। जस्स णं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं 'पच्चक्खायं' इति वदमाणस्स एवं 卐 अभिसमन्नागतं भवति 'इमे जीवा, इमे अजीवा, इमे तसा, इमे थावरा' तस्स णं॥ सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं 'पच्चक्खाय' इति वदमाणस्स सुपच्चक्खायं भवति, नो दुपच्चक्खायं भवति। एवं खलु से सुपच्चक्खाई सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं । * 'पच्चक्खायं' इति वयमाणे सच्चं भासं भासति, नो मोसं भासं भासति, एवं खलु से ॐ सच्चवादी सव्वपाणे हिं जाव सव्वसत्तेहिं तिविहं तिविहे णं संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे अकिरिए संवुडे [एगंतअदंडे] एगंतपंडिते # यावि भवति । से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ जाव सिय दुपच्चक्खायं भवति।। ____ (व्या. प्र. 7/2/2) ॥ [1-2 प्र.] भगवन्! ऐसा क्यों कहा जाता है कि सभी प्राण यावत् सभी सत्त्वों की हिंसा का प्रत्याख्यान-उच्चारण करने वाले के कदाचित् सुप्रत्याख्यान और कदाचित् दुष्प्रत्याख्यान । होता है? [1-उ.] गौतम! समस्त प्राण यावत् सर्व सत्त्वों की हिंसा का प्रत्याख्यान किया है, जो इस प्रकार कहने वाले जिस पुरुष को इस प्रकार (यह) अभिसमन्वागत (ज्ञात-अवगत) EF नहीं होता कि 'ये जीव हैं, ये अजीव हैं, ये त्रस हैं , ये स्थावर हैं', उस पुरुष का प्रत्याख्यान ॐ नहीं होता, किन्तु दुष्प्रत्याख्यान होता है। साथ ही, "मैंने सभी प्राण यावत् सभी सत्त्वों की i हिंसा का प्रत्याख्यान किया है"- इस प्रकार कहने वाला वह दुष्प्रत्याख्यानी पुरुष सत्य भाषा है नहीं बोलता, किन्तु मृषाभाषा बोलता है। इस प्रकार वह मृषावादी सर्व प्राण यावत् समस्त ENEFTEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEERY [जैन संस्कृति खण्ड/46
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy