SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॐ वह बाण पहले के खिंचाव से उछल कर उस मृग को बींध डाले, तो हे भगवान् ! वह पुरुष मृग के वैर से स्पृष्ट है या (उक्त) पुरुष के वैर से स्पृष्ट है? [7 उ.] गौतम! जो पुरुष मृग को मारता है, वह मृग के वैर से स्पृष्ट है और जो 卐 पुरुष, पुरुष को मारता है, वह पुरुष के वैर से स्पृष्ट है। [प्र.] भगवन्! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि यावत् वह पुरुष, पुरुष के वैर से स्पृष्ट है? 4 [उ.] हे गौतम! यह तो निश्चित है न कि 'जो किया जा रहा है, वह किया हुआ' 卐 कहलाता है, 'जो मारा जा रहा है, वह मारा हुआ', 'जो जलाया जा रहा है, वह जलाया ॥ का हुआ' कहलाता है और 'जो फेंका जा रहा है, वह फेंका हुआ, कहलाता है'? (गौतम-) हां, भगवन् ! जो किया जा रहा है वह किया हुआ कहलाता है, और * यावत् ... जो फेंका जा रहा है, वह फेंका हुआ कहलाता है। H (भगवन्-) इसलिए इसी कारण हे गौतम! जो मृग को मारता है, वह मृग के वैर 卐 से स्पृष्ट और जो पुरुष को मारता है, वह पुरुष के वैर से स्पृष्ट कहलाता है। यदि मरने वाला छह मास के अन्दर मरे, तो मारने वाला कायिकी आदि यावत् पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट कहलाता है और यदि मरने वाला छह मास के पश्चात् मरे तो मरने वाला पुरुष, कायिकी 卐 यावत् पारितापनिकी- इन चार क्रियाओं से स्पृष्ट कहलाता है। 1701 पुरिसे णं भंते ! कच्छंसि वा जाव वणविदुग्गंसि वा मियवित्तीए मियसंकप्पे ममियपणिहाणे मियवहाए गंता 'एए मिये' त्ति काउं अन्नयरस्स मियस्स वहाए उसुं निसिरइ, ततो णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए। से केणटेणं? गोयमा! जे भविए निसिरणयाए तिहिं, जे भविए निसिरणयाए वि卐 विद्धंसणयाए वि, नो मारणयाए चउहिं, जे भविए निसिरणयाए वि विद्धंसणयाए वि मारणयाए वि तावं च णं से पुरिसे जाव पंचहिं किरियाहिं पुढे । से तेणद्वेणं गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए। (व्या. प्र. 1/8/6) [6 प्र.] भगवन् ! मृगों से आजीविका चलाने वाला, मृगों का शिकार करने के लिए है * कृत- संकल्प, मृगों के शिकार में तन्मय, मृगवध के लिए कच्छ में यावत् वनविदुर्ग में :जाकर 'ये मृग हैं' ऐसा सोच कर किसी एक मृग को मारने के लिए बाण फेंकता है, तो पुरुष FFER अहिंसा-विश्वकोश/25/ E
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy