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________________ $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 [ विवेचन :- मृग घातक आदि के संबंध में लगने वाली क्रियाओं के संबंध में यहां विचार किया गया है। विचार - बिन्दु इस प्रकार हैं : (1) मृगवध के लिए जाल फैलाने, मृगों को बांधने तथा मारने वाले को लगने वाली क्रियाएं । (2) मृगों को मारने हेतु बाण फेंकने, बींधने और मारने वाले को लगने वाली क्रियाएं। (3) बाण को खींचकर खड़े हुए पुरुषों का मस्तक कोई अन्य पुरुष पीछे से आकर खड्ग से काट डाले, उसी समय वह बाण उछल कर यदि मृग को बींध डाले तो मृग मारने वाला मृगवैर से स्पृष्ट और पुरुष को मारने वाला पुरुषवैर से स्पृष्ट होता है, उनको लगने वाली कियाएं। (4) बरछी या तलवार द्वारा किसी पुरुष का मस्तक काटने वाले को लगने वाली क्रियाएं। छ: मास की अवधि क्यों ?- जिस पुरुष के प्रहार से मृगादि प्राणी छह मास के भीतर मर जाए तो उसके आसन्नवधक- बरछी या खड्ग से मस्तक काटने वाला पुरुष आसन्नवधक होने के कारण तीव्र वैर से स्पृष्ट होता है। उस वैर के कारण वह उसी पुरुष द्वारा अथवा दूसरे के द्वारा उसी जन्म में या जन्मान्तर में मारा जाता है।] (69) पुरिसे णं भंते! कच्छंसि वा जाव अन्नयरस्स मियस्स वहाए आयतकण्णायतं उ आयोमेत्ता चिट्ठिज्जा, अन्ने य से पुरिसे मग्गतो आगम्म सयपाणिणा असिणा सीसं छिंदेज्जा, से य उसू ताए चेव पुव्वायामणयाए तं मियं विंधेज्जा, से णं भंते! पुरिसे किं मियवेरेणं पुट्ठे? पुरिसवेरेणं पुट्ठे ! गोतमा ! जे मियं मारेति से मियवेरेणं पुट्ठे, जे पुरिसं मारेइ से पुरिसवेरेणं पुट्ठे । सेकेणणं भंते! एवं वुच्चइ जाव से पुरिसवेरेण पुट्ठे ? से नूणं गोयमा ! कज्जमाणे कडे, संधिज्जमाणे संधिते, निव्वतिज्जमाणे निव्वत्तिए, निसिरिजमाणे निसट्ठे त्ति वत्तव्वं सिया ? हता, भगवं ! कज्जमाणे कडे जाव निसट्टे त्ति वत्तव्वं सिया । मरण में वह प्रहार निमित्त माना जाता है। इसलिए मारने वाले को पांचों क्रियाएं लगती हैं, किन्तु वह मृगादि प्राणी छह महीने के बाद मरता है तो उसके मरण में वह प्रहार निमित्त नहीं माना जाता है, इसलिए उसे प्राणातिपातिकी के 過 अतिरिक्त शेष चार कियाएं ही लगती हैं। यह कथन व्यवहारनय की दृष्टि से है, अन्यथा उस प्रहार के निमित्त से जन्म कभी भी मरण हो, उसे पांचों कियाएं लगती हैं। से तेणणं गोयमा ! जे मियं मारेति से मियवेरेणं पुट्ठे जे पुरिसं मारेइ से पुरिसवेरेणं पुट्ठे | अंतो छण्हं मासाणं मरइ काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्टे, बाहिं छण्हं मासाणं मरति काइयाए जाव पारितावणियाए चउहिं किरियाहिं पुट्टे । (व्या. प्र. 1/8/7) [7 प्र.] भगवन्! कोई पुरुष, कच्छ में यावत् किसी मृग का वध करने के लिए कान तक ताने (लम्बे किये) हुए बाण को प्रयत्नपूर्वक खींच कर खड़ा हो और दूसरा कोई पुरुष पीछे से आकर उसे खड़े हुए पुरुष का मस्तक अपने हाथ से तलवार द्वारा काट डाले । 卐卐 编 [ जैन संस्कृति खण्ड /24 $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 卐卐卐卐卐卐卐卐事事事事事事事事 馬 馬 卐 節 馬
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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