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E ETTETTEFFERESESEGREEma किसी समय राजा जनक विद्वज्जनों से सुशोभित सभा में बैठे हुए थे। वहीं पर कार्य करने में कुशल तथा ऊ हित करने वाला कुशलमति नाम का सेनापति बैठा था। राजा जनक ने उससे एक प्राचीन कथा पूछी। वह कहने लगा कि, "पहले राजा सगर, रानी सुलसा तथा घोड़ा आदि अन्य कितने ही जीव यज्ञ में होमे गए थे। वे सब शरीर-सहित स्वर्ग गए थे, यह बात सुनी जाती है। यदि आज कल भी यज्ञ करने से स्वर्ग प्राप्त होता हो तो हम लोग भी यथायोग्य रीति से यज्ञ करें। राजा के इस प्रकार वचन सन कर सेनापति कहने लगा कि सदा क्रोधित हुए नागकुमार और असुरकुमार परस्पर की मत्सरता से एक-दूसरे के प्रारम्भ किए हुए कार्यों में विघ्न करते हैं।
अयं चाद्य महाकालेनासुरेण नवो विधिः। याज्ञो विनिर्मितस्तस्य विघात:शयतेऽरिभिः॥ (174) नागराडुपकर्ताऽभून्नमेश्च
विनमेरपि। ततो यागस्य हन्तारः खगास्तत्पक्षपातिनः ॥ (175)
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चूंकि यज्ञ की यह नई रीति महाकाल नामक असुर ने चलाई है, अतः प्रतिपक्षियों द्वारा इसमें विघ्न किए जाने की आशंका है। इसके सिवाय एक बात यह भी है कि नागकुमारों के राजा धरणेन्द्र ने नमि तथा विनमि का उपकार किया था, इसलिए उसका पक्षपात करने वाले विद्याधर अवश्य ही यज्ञ का विघात करेंगे।
यागः सिद्धयति शक्तानां तद्विकारव्यपोहने । यद्यप्येता बुध्ये रन रूप्यशैलनिवासिनः॥ (176) निधितो रावणः शौर्यशाली मानग्रहाहितः। तस्मात्प्रागपि शङ्काऽस्ति स कदाचित् विघातकृत्॥ (177) स्यात्तद्रामाय शक्ताय दास्यामः कन्यकामिमाम्। इति तद्वचनं सर्वे तुष्टु वुस्तत्सभासिनः॥ (178)
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यज्ञ उन्हीं का सिद्ध हो पाता है, जो कि उसके विघ्न दूर करने में समर्थ होते हैं । यद्यपि विजयार्ध पर्वत । घर पर रहने वाले विद्याधरों को इसका पता नहीं चलेगा, यह ठीक है, तथापि यह निश्चित है कि उनमें रावण बड़ा
पराक्रमी और मानरूपी ग्रह से अधिष्ठित है, उससे इस बात का भय पहले से ही है कि कदाचित् वह यज्ञ में विघ्न उपस्थित करे । हां, एक उपाय हो सकता है कि इस समय रामचंद्रजी सब प्रकार से समर्थ हैं। उनके लिए यदि हम
यह कन्या प्रदान कर देंगे तो वे सब विघ्न दूर कर देंगे। इस प्रकार सेनापति के वचनों की सभा में बैठे हए सब 卐लोगों ने प्रशंसा की।
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REETTEERFERESTEREST [जैन संस्कृति खण्ड/482