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________________ 听听听听听听听听听听听听听听听 弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱 FREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEng लब्धासत्यफलं सद्यो निनिन्दु पतिं जनाः। पर्वतं च निराचाः खलीकृत्य खलं पुरात् ॥ तत्त्ववादिनमक्षुद्रं नारदं जितवादिनम्। कृत्वा ब्रह्मरथारूढं पूजयित्वा जना ययुः॥ पर्वतोऽपि खलीकारं प्राप्य देशान् परिभ्रमन् । दष्टं द्विष्टं निरैशिष्ट महाकालमहासुरम्॥ ततस्तस्मै पराभूतिं पराभूतिजुषे पुरा। निवेद्य तेन संयुक्तः कृत्वा हिंसागमं कुधीः॥ लोके प्रतारको भूत्वा हिंसायनं प्रदर्शयन् । अरजयजनं मूढ़ प्राणिहिंसनतत्परम् ॥ (ह. पु. 17/155-159) जिसे तत्काल ही असत्य बोलने का फल मिल गया था, ऐसे राजा वसु की सब लोगों ने निन्दा की और दुष्ट 卐 पर्वत का तिरस्कार कर उसे नगर से बाहर निकाल दिया। तत्त्ववादी, गम्भीर एवं वादियों को परास्त करने वाले नारद ॐ को लोगों ने ब्रह्म रथ पर सवार किया तथा उसका सम्मान कर सब यथास्थान चले गये। इधर तिरस्कार पाकर पर्वत भी अनेक देशों में परिभ्रमण करता रहा अन्त में उसने द्वेषपूर्ण दुष्ट महाकाल जी नामक असुर को देखा। पूर्व भव में जिसका तिरस्कार हुआ था, ऐसे महाकाल असुर के लिए अपने परभव का समाचार कर पर्वत उसके साथ मिल गया और दुर्बुद्धि के कारण हिंसापूर्ण शास्त्र की रचना कर, लोक में ठगिया बन हिंसापूर्ण यज्ञ का प्रदर्शन करता हुआ प्राणिहिंसा में तत्पर मूर्खजनों को प्रसन्न करने लगा। 如明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 5 अहिंसा-विश्वकोश।479].
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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