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________________ EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEENA ॐ प्राणियों का घात करने वाले को स्वर्ग कैसे हो सकता है? जिससे कि याजक आदि को याज्य (पशु आदि ॐ के) स्वर्ग जाने में दृष्टान्त माना जा सके। [भावार्थ- पर्वत ने कहा था कि मन्त्र द्वारा होम करते ही पशु को स्वर्ग भेज ॐ दिया जाता है और वहां वह याजकादि के समान कल्प-काल तक अत्यधिक सख भोगता रहता है, किन्त प्राणियों का घात करने वाले याजक आदि को स्वर्ग कैसे मिल सकता है? उन्हें तो इस पाप के कारण नरक मिलना चाहिए। अतः जब याजक आदि स्वर्ग नहीं जाते, तब उन्हें पशु के स्वर्ग जाने में दृष्टान्त कैसे बनाया जा सकता है? धर्म-सहित कार्य ही पशु को सुख प्राप्ति में सहायक हो सकता है, अधर्म-सहित कार्य नहीं, क्योंकि बच्चे के लिए माता के द्वारा भी दिया हुआ अपथ्य पदार्थ सुख-प्राप्ति का कारण नहीं होता। इस प्रकार सभारूपी वर्षाकाल में अपने तीक्ष्ण वचन रूपी वज्र के अग्रभाग से पर्वत के मिथ्या पक्षरूपी पर्वत-पहाड़ के भद्दे किनारे को तोड़ कर जब नारदरूपी मेघ चुप हो रहा, तब सभा में बैठे हुए धर्म के परीक्षक लोगों ने एवं साधारण मनुष्यों ने सिर हिला-हिला कर तथा अपनी-अपनी अंगुलियां चटका कर नारद को बारबार धन्यवाद दिया। राजोपरिचरः पृष्टस्ततः शिष्टैबहुश्रुतैः। राजन् यथाश्रुतं हि त्वं सत्यं गुरुभाषितम्॥ मूढसत्यविमूढेन वसुना दृढबुद्धिना। स्मरताऽपि गुरोर्वाक्यमिति वाक्यमुदीरितम् ॥ युक्तियुक्तमुपन्यस्तं नारदेन सभाजनाः। पर्वतेन यदत्रोक्तं तदुपाध्यायभाषितम्॥ वाङ्मात्रेण ततो भूमौ निमनः स्फटिकासनः। वसुः पपात पाताले पातकात् पतनं ध्रुवम् ॥ पातालस्थितकायोऽसौ सप्तमी पृथ्वीं गतः। नरके नारको जातो महारौरवानामनि ॥ हिंसानन्दमृषानन्दरौद्रध्यानाविलो वसुः। जगाम नरकं रौद्रं रौद्रध्यानं हि दु:खदम् ॥ (ह. पु. 17/148-153) तदनन्तर, अनेक शास्त्रों के ज्ञाता शिष्ट जनों ने अन्तरिक्षचारी राजा वसु से पूछा कि हे राजन्! आपने गुरु द्वारा कहा हुआ जो सत्य अर्थ सुना हो, वह कहिए। यद्यपि राजा वसु दृढ- बुद्धि था और गुरु के वचनों का उसे अच्छी तरह स्मरण था, तथापि मोहवश सत्य के विषय में अविवेकी हो वह निम्न प्रकार वचन कहने लगा- हे सभाजनों! यद्यपि नारद ने युक्ति- युक्त कहा है तथापि पर्वत ने जो कहा है वह उपाध्याय के द्वारा कहा हुआ कहा है। इतना कहते ही वसु का स्फटिकमणिमय आसन पृथिवी में धंस गया और वह पाताल में जा गिरा, यह उचित ही है क्योंकि पाप जसे पतन होता ही है। जिसका शरीर पाताल में स्थित था, ऐसा वसु मरकर सातवीं पृथिवी गया और वहां महारौरव नामक नरक में नारकी हुआ। हिंसानन्द और मृषानन्द रौद्र ध्यान से कलुषित हो वसु भयंकर नरक में गया, वह उचित कही है, क्योंकि रौद्रध्यान दुःखदायक होता ही है। 明明明明明明明明明明明明明明$$$$$$听听听听听听听听听听听听听听听听 UCLEICLELELELELELEUCUCUELELELELELELELELELELELELELELALA66988 [जैन संस्कृति खण्ड/478
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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