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{1119) श्रुते दृष्टे स्मृते जन्तुवधाधुरुपराभवे। या मुदस्तद्धि विज्ञेयं रौद्रं दुःखानलेन्धनम्॥
. (ज्ञा. 24/10/1232) जीवों के वध आदि तथा उनके अत्यन्त पराजय के सुनने , देखने अथवा स्मरण होने पर जो हर्ष हुआ करता है उसे 'रौद्रध्यान' जानना चाहिए। वह 'रौद्रध्यान' दुःखरूप अग्नि के 卐 बढ़ाने में इन्धन के समान काम करता है।
{1120) क्रूरता दण्डपारुष्यं वञ्चकत्वं कठोरता। निस्त्रिंशत्वं च लिङ्गानि रौद्रस्योक्तानि सूरिभिः॥
(ज्ञा. 24/35/1259) ___ दुष्टता, दण्ड की कठोरता, धूर्तता, कठोरता और स्वभाव में निर्दयता-ये आचार्यों के 卐 द्वारा उस रौद्रध्यान के आभ्यन्तर चिन्ह कहे गये हैं।
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{1121) हिंसोपकरणादानं क्रूरसत्त्वेष्वनुग्रहम्। निस्त्रिंशतादिलिङ्गानि रौद्रे बाह्यानि देहिनाम्॥
(ज्ञा. 24/13/1237) ___ हिंसा के उपकरणभूत विष-शस्त्रादि का ग्रहण करना, दुष्ट जीवों के विषय में ॥ ॐ उपकार का भाव रखना तथा निर्दयतापूर्ण व्यवहार आदि- ये भी प्राणियों के 'रौद्रध्यान' के )
बाह्य चिन्ह हैं।
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) अहिंसा-विश्वकोश|453)