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________________ SEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE 卐 [भावार्थ- राघव मत्स्य के कान में जो तन्दुल मत्स्य रहता है, वह यद्यपि जीवों की हिंसा नहीं कर पाता है, 卐 केवल बड़े मत्स्य के मुख विवर में आये हुए जीवों को देखकर उसके मन में उन्हें मारने का भाव उत्पन्न होता है तथापि * वह उस भाव-हिंसा के कारण मर कर राघव मत्स्य के समान ही सातवें नरक में जाता है।] [11101 हिंसाकर्मणि कौशलं निपुणता पापोपदेशे भृशम्, दाक्ष्यं नास्तिकशासने प्रतिदिनं प्राणातिपाते रतिः। संवासः सह निर्दयैरविरतं नैसर्गिकी क्रूरता, यत्स्याद्देहभृतां तदत्र गदितं रौद्रं प्रशान्ताशयैः॥ (ज्ञा. 24/6/1228) प्राणियों के हिंसा करने में जो कुशलता, पाप के उपदेश में अतिशय प्रवीणता, नास्तिक मत के प्रतिपादन में चतुरता, प्रतिदिन प्राणघात में अनुराग, दुष्ट जनों के साथ 卐 सहवास, तथा निरन्तर जो स्वाभाविक दुष्टता रहती है, उसे यहां वीतराग महात्माओं ने रौद्रध्यान' कहा है। {1111) केनोपायेन घातो भवति तनुमतां कः प्रवीणोऽत्र हन्ता, हन्तुं कस्यानुरागः कतिभिरिह दिनैर्हन्यते जन्तुजातम् । हत्वा पूजां करिष्ये द्विजगुरुमरुतां कीर्तिशान्त्यर्थमित्थम्, यः स्याद्धिंसाभिनन्दो जगति तनुभृतां तद्धि रौद्रं प्रणीतम् ॥ (ज्ञा. 24/7/1229) __ प्राणियों का घात किस उपाय से हो सकता है, यहां कौन सा घातक चतुर है, प्राणघात में अनुराग किसे रहता है, यह प्राणियों का समूह यहां कितने दिन में मारा जा सकता है, मैं उसे मार कर कीर्ति और शान्ति के लिए ब्राह्मण, गुरु और वायुदेव की पूजा करूंगा, F इस प्रकार चिन्तन के साथ संसार में प्राणियों को जो हिंसाकर्म में आनन्द हुआ करता है, उसे 卐 'रौद्रध्यान' कहा जाता है। %%%%%%%%%%%%%頭頭頭頭弱弱弱弱弱弱弱弱弱事事弱弱弱弱弱弱弱弱み ad LEUCLELCLCLCLCLCLCLELELELELELELELELELELELELELELELELELELE [जैन संस्कृति खण्ड/450
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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