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________________ (1104) FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFEEP रोद्दे झाणे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा- हिंसाणुबंधि, मोसाणुबंधि, तेणाणुबंधि, सारक्खणाणुबंधि। (ठा. 4/1/63) रौद्रध्यान चार प्रकार का कहा गया है, जैसे1. हिंसानुबन्धी- निरन्तर हिंसक प्रवृत्ति में तन्मयता कराने वाली चित्त की एकाग्रता 2. मृषानुबन्धी- असत्य भाषण सम्बन्धी एकाग्रता। 3. स्तेनानुबन्धी- निरन्तर चोरी करने-कराने की प्रवृत्ति सम्बन्धी एकाग्रता। 4. संरक्षणानुबन्धी- परिग्रह के अर्जन और संरक्षण सम्बन्धी तन्मयता। (1105) हिंसानन्दान्मृषानन्दाच्चौर्यात् संरक्षणात्तथा। प्रभवत्यङ्गिनां शश्वदपि रौद्रं चतुर्विधम्॥ (ज्ञा. 24/2/1224) (1) हिंसा में आनन्द मानने से, (2) असत्य भाषण में आनन्द मानने से, (3) चोरी के अभिप्राय से तथा (4) विषयों के संरक्षण की भावना के कारण प्राणियों के निरन्तर म चार प्रकार का 'रौद्र ध्यान' उत्पन्न होता है। 听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明 {1106) हते निष्पीडिते ध्वस्ते जन्तुजाते कदर्थिते। स्वेन चान्येन यो हर्षस्तद्धिंसारौद्रमुच्यते ॥ (ज्ञा. 24/4/1226) स्वयं अपने द्वारा अथवा अन्य के द्वारा प्राणि-समूह के मारे जाने पर, दबाये जाने ॥ 卐 पर, नष्ट किये जाने पर, अथवा पीड़ित किये जाने पर जो हर्ष हुआ करता है, उसे भी 'रौद्रध्यान' कहते हैं। [जैन संस्कृति खण्ड/448
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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