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________________ {1060) वणस्सइं न हिंसंति मणसा वयसा कायसा। तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया॥ (40) वणस्सइं विहिंसंतो हिंसई उ तदस्सिए। तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य अचक्खुसे ॥ (41) तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दोग्गइ-वड्ढणं। वणस्सइ-समारंभं जावज्जीवाए वजए॥ (42) (दशवै. 6/303-305) सुसमाहित संयमी (साधु-साध्वी) मन, वचन और काय- इस त्रिविध योग से तथा ) * कृत, कारित और अनुमोदन-इस त्रिविध करण से वनस्पतिकाय की हिंसा नहीं करते। (40) वनस्पतिकाय की हिंसा करता हुआ (साधु) उसके आश्रित विविध चाक्षुष (दृश्यमान) और अचाक्षुष (अदृश्य) त्रस और स्थावर प्राणियों की हिंसा करता है। (41) 卐 इसलिए इसे दुर्गतिवर्द्धक दोष जान कर (साधुवर्ग) जीवन भर वनस्पतिकाय के 卐 समारम्भ का त्याग करे। (42) 2頭羽頭弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱頃頭弱弱弱弱弱弱弱弱$$$$$$$$ {1061) से भिक्खू वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे णो मट्टियागतेहिं पाएहिं हरियाणि छिंदिय छिंदिय विकुजिय विकुजिय विफालिय विफालिय उम्मग्गेण हरियवधाए गच्छेज्जा 'जहेयं पाएहिं मट्टियं खिप्पामेव हरियाणि अवहरंतु।माइट्ठाणं संफासे। णो 卐 एवं करेजा।से पुवामेव अप्पहरियं मग्गं पडिलेहेजा, [पडिलेहेत्ता] ततो संजयामेव ॥ गामाणुगामं दूइज्जेजा। (आचा. 3/2 सू. 498) ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी गीली मिट्टी एवं कीचड़ से भरे हुए है अपने पैरों से हरितकाय (हरे घास आदि) का बार-बार छेदन न करे तथा हरे पत्तों को बहुत । मोड़-तोड़ कर या दबा कर एवं उन्हें चीर-चीर कर मसलता हुआ मिट्टी न उतारे और न # हरितकाय की हिंसा करने के लिए उन्मार्ग में इस अभिप्राय से जाए कि 'पैरों पर लगी हुई है 卐 इस कीचड़ और गीली मिट्टी को यह हरियाली अपने आप हटा देगी', क्योंकि ऐसा करने वाला साधु मायास्थान का स्पर्श करता है। साधु को इस प्रकार नहीं करना चाहिए। वह पहले ही हरियाली से रहित मार्ग का प्रतिलेखन करे (देखे), और तब उसी मार्ग से यतनापूर्वक ॐ ग्रामानुग्राम विचरण करे। EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEER [जैन संस्कृति खण्ड/432 N
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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