SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 445
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॐ जीवों की हिंसा करता है। वह केवल अप्कायिक जीवों की ही नहीं, किन्तु उसके आश्रित अन्य अनेक प्रकार के (त्रस एवं स्थावर) जीवों की भी हिंसा करता है। ___मैं कहता हूं- जल के आश्रित अनेक प्रकार के जीव रहते हैं। ___ हे मनुष्य! इस अनगार-धर्म में, अर्थात् अर्हत्दर्शन में जल को 'जीव' (सचेतन) कहा गया है। जलकाय के जो (घातक तत्व) शस्त्र हैं, उन पर चिन्तन करके देख! भगवान ने जलकाय के अनेक शस्त्र बताये हैं। जलकाय की हिंसा, सिर्फ हिंसा ही नहीं, वह अदत्तादान-चोरी भी है। (1036) तत्थ खलु भगवता परिण्णा पवेदिता। इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण॥ माणण- पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघातहेउं से सयमेव पुढविसत्थं 卐 समारंभति, अण्णेहिं वा पुढविसत्थं समारंभंते समणुजाणति । तं से अहिआए, तं से अबोहीए।... (आचा. 1/1/2/सू. 13) के इस विषय में भगवान महावीर स्वामी ने परिज्ञा/ विवेक का उपदेश किया है। कोई 卐 व्यक्ति इस जीवन के लिए, प्रशंसा-सम्मान और पूजा के लिए, जन्म, मरण और मुक्ति के 卐 लिए, दुःख का प्रतीकार करने के लिए, स्वयं पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा करता है, दूसरों से हिंसा करवाता है, तथा हिंसा करने वालों का अनुमोदन करता है, वह (हिंसावृत्ति) उसके 卐 अहित के लिए होती है। वह उसकी अबोधि अर्थात् ज्ञान-बोधि, दर्शन-बोधि, और चारित्रम बोधि की अनुपलब्धि के लिए कारणभूत होती है। 弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱~~$$$$$$$$$弱弱弱弱 __{1037] : लजमाणा पुढो पास। अणगारा मोति एगे पवयमाणा, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं पुढविकम्मसमारंभेणं पुढविसत्थं समारं-भमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसति। ___ (आचा. 1/1/2/सू. 12) तू देख! आत्म-साधक लजमान है-(हिंसा से स्वयं का संकोच करता हुआ अर्थात् ॥ ॐ हिंसा करने में लजा का अनुभव करता हुआ संयममय जीवन जीता है।) कुछ साधु-वेषधारी 'हम गृहत्यागी हैं ऐसा कथन करते हुए भी वे नाना प्रकार के शस्त्रों में से पृथ्वीसम्बन्धी हिंसा-क्रिया में लग कर पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा करते हैं। पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा के साथ तदाश्रित अन्य अनेक प्रकार के जीवों की भी हिंसा करते हैं। EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEET अहिंसा-विश्वकोश।417] R
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy