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________________ 10191 उड्ढं अहे यं तिरियं दिसासु तसा य जे थावर जे य पाणा। सया जए तेसु परिव्वएज्जा मणप्पओसं अविकप्पमाणे॥ ___ (सू.कृ. 1/14/14) ऊंची, नीची और तिरछी दिशाओं में जो त्रस और स्थावर प्राणी हैं उनके प्रति सदा संयम रखता हुआ परिव्रजन करे, मानसिक प्रद्वेष से सम्बन्धित विकल्प न करे। %~5%5%$%s%弱弱弱弱弱弱弱弱弱 1020) पुढवीजीवा पुढो सत्ता आउजीवा तहागणी। वाउजीवा पुढो सत्ता तण रुक्खा सबीयगा॥ अहावरे तसा पाणा एवं छक्काय आहिया। इत्ताव एव जीवकाए णावरे विज्जती कए। सव्वाहिं अणुजुत्तीहिं मइमं पडिलेहिया। सव्वे अकंतदुक्खा य अतो सव्वे अहिंसया॥ (सू.कृ. 1/11/7-9) पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और बीज पर्यन्त तृण और वृक्ष- ये सब जीव पृथक् सत्त्व (स्वतंत्र अस्तित्व) वाले हैं। इनके अतिरिक्त त्रस जीव हैं। इस प्रकार छह जीवकाय बतलाए गए हैं। जीव-काय इतने ही हैं। इनसे अतिरिक्त कोई जीव-काय नहीं है। मतिमान् मनुष्य सभी अनुयुक्तियों से जीवों की पर्यालोचना करे। सब जीवों को दुःख अप्रिय हैं, इसलिए किसी की भी हिंसा न करे। 110211 पुढवि-दग-अगणि-मारुय-तण-रुक्ख सबीयगा। तसा य पाणा जीव त्ति, इइ वुत्तं महेसिणा॥ (2) तेसिं अच्छणजोएण निच्चं होयव्वयं सिया। मणसा काय-वक्केण एवं भवइ संजए॥ (3) पुढविं भित्तिं सिलं लेखें, नेव भिंदे, न संलिहे । तिविहेण करण जोएण, संजए सुसमाहिए॥ (4) सुद्धपुढवीए न निसिए ससरक्खम्मि य आसणे। पमजित्तु निसीएजा जाइत्ता जस्स उग्गहं॥ (5) (दशवै. 8/390-393) I.CUCUELELELELELELEUCLELELELELELELELELELELELELELELELEVELS अहिंसा-विश्वकोश/4091
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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