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________________ 卐卐卐卐卐 編編編編編號, और स्थावर अतिसूक्ष्म प्राणी हैं, जिन्हें (साधुवर्ग) रात्रि में नहीं देख पाता, 卐 तब (आहार की) एषणा कैसे कर सकता है? । (23) 卐 卐 उदक से आर्द्र (सचित्त जल से भीगे हुए). बीजों से संसक्त (संस्पृष्ट) आहार को 筑 तथा पृथ्वी पर पड़े हुए प्राणियों को दिन में बचाया जा सकता है, (रात्रि में नहीं), तब फिर रात्रि में निर्ग्रन्थ भिक्षाचर्या कैसे कर सकता है? 1 (24) 卐 ज्ञातपुत्र (भगवान् महावीर) ने इसी (हिंसात्मक) दोष को देख कर कहा- निर्ग्रन्थ $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 卐 卐 馬 馬 筑 (साधु या साध्वी) रात्रिभोजन नहीं करते। (वे रात्रि में ) सब (चारों ) प्रकार के आहार का सेवन नहीं करते। (25) जीव-गात्र के रक्षकः जैन श्रमण (1016) उड्ढमहे तिरियं दिसासु जे पाणा तस थावरा। सव्वत्थ विरतिं कुज्जा संति णिव्वाणमाहितं ॥ (सू.कृ. 1/8/19) ऊंची, नीची और तिरछी दिशाओं में जो कोई त्रस और स्थावर प्राणी हैं, सब अवस्थाओं में उनकी हिंसा से विरत रहे। (विरति ही) शांति है और शांति ही निर्वाण है। (1017) बुज्झमाणे मतीमं पावाओ अप्पाण णिवट्टएज्जा । हिंसप्पसूताणि दुहाणि मत्ता वेराणुबंधीणि महब्भयाणि ॥ (सू.कृ. 1/10/21 ) मतिमान् मनुष्य समाधि को समझ कर तथा यह जानकर कि 'दुःख हिंसा से उत्पन्न (1018) उड्ढ अहे तिरियं च जे केइ तसथावरा । सव्वत्थ विरंतिं कुज्जा संति णिव्वाणमाहियं ॥ होते हैं, वैर की परंपरा को बढ़ाते हैं और महा भयंकर हैं', अपने आपको पाप से बचाए । (सू.कृ. 1/11/11) ऊंचे, नीचे और तिरछे लोक में जो कोई त्रस और स्थावर प्राणी हैं, सब अवस्थाओं में उनकी हिंसा से विरत रहे। ( विरति ही शांति है और) शांति ही निर्वाण है । 7 卐卐卐 [ जैन संस्कृति खण्ड /408 卐编编编卐卐卐卐” 馬蛋扇扇 明$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 卐 卐 馬 過 卐 馬 筑 *$$$$$$$ 卐 卐
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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