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________________ הכתבהסתבכתבהסתברכתנתברכתפחנתפתתפתלתלתכתבתרכובתפובהבהבהבהבהבה 19971 पंचमं आयाणणिक्खेवणसमिई-पीढ-फलग-सिजा-संथारग-वत्थ-पत्तॐ कंबल-दंडग-रय-हरण-चोलपट्टग-मुहपोत्तिय-पायपुंछणाई एयं पि संजमस्स उबबूहणट्टयाए वायातव-दंसमसग-सीयपरिकखणट्ठयार उवगरणं रागदोसरहियं परिहरियव्वं संजमेणं णिच्चं पडिलेहण-पप्फोडण-पमज्जणयाए अहो य राओ य 卐 अप्पमत्तेण होइ सययं णिक्खियव्वं च गिहियव्वं च भायणभंडोवहिउवगरणं एवं आयाणभंडणिक्खेवणासमिइजोमेण भाविओ भवइ अंतरप्पा असबलमसंकिलिटुणिव्वणचरित्तभावणाए अहिंसए संजए सुसाहू। __(प्रश्न. 2/1/सू.117) अहिंसा महाव्रत की पांचवीं भावना आदान-निक्षेपणसमिति है। इस का स्वरूप इस प्रकार है-संयम के उपकरण पीठ-पीढ़ा, चौकी, फलक पाट, शय्या-सोने का आसन, ॐ संस्तारक-घास का बिछौना, वस्त्र, पात्र, कम्बल, दण्ड, रजोहरण, चोलपट्ट, मुखवस्त्रिका, 卐 पादपोंछन-पैर पाँछने का वस्त्रखण्ड, इन्हें अथवा इनके अतिरिक्त उपकरणों को संयम की है रक्षा या वृद्धि के उद्देश्य से तथा पवन, धूप, डांस, मच्छर और शीत आदि के शरीर की रक्षा के लिए धारण-ग्रहण करना चाहिए। (शोभावृद्धि आदि किसी अन्य प्रयोजन से नहीं)। जसाधु सदैव इन उपकरणों के प्रतिलेखन, प्रस्फोटन-झटकारने और प्रमार्जन करने में, दिन में 卐 और रात्रि में सतत अप्रमत्त रहे और भाजन-पात्र, भाण्ड-मिट्टी के बरतन, उपधि-वस्त्र तथा * अन्य उपकरणों को यतनापूर्वक रक्खे या उठाए। इस प्रकार आदान-निक्षेपणसमिति के योग से भावित अन्तरात्मा-अन्त:करण वाला साधु निर्मल, असंक्लिष्ट तथा अखण्ड-निरतिचार चारित्र की भावना से युक्त अहिंसक संयमशील सुसाधु होता है अथवा ऐसा सुसाधु ही अहिंसक होता है। 1998) $明明明明明明明明明 कफ-मूत्र-मलप्रायं, निर्जन्तु-जगतीतले। यत्नाद् यदुत्सृजेत् साधुः सोत्सर्गसमितिर्भवेत्॥ ... . (है. योग. 1/40) साधु कफ, मल, मूत्र आदि परिष्ठापन करने (डालने या फैंकने) योग्य पदार्थों को जीव-जंतु-रहित जमीन पर यतना विधि पूर्वक जो त्याग (परिष्ठापन) करते हैं, वह 'उत्सर्ग-समिति' है। LELOUCLELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELE अहिंसा-विश्वकोश/4011
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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