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{993) उच्चारं पस्सवणं णिसि सुत्तो उट्ठिदो हु काऊण। अप्पडिलिहिय सुवंतो जीववहं कुणदि णियदं तु ॥
___ (मूला. 10/914) जो रात में सोने से उठ कर मल-मूत्र विसर्जन करके प्रतिलेखन किये बिना सो जाता है, वह साधु निश्चित ही जीववध करता है।
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आसनादीनि संवीक्ष्य, प्रतिलिख्य च यत्नतः। गृहीयान् निक्षिपेद्वा यत् साऽदानसमितिः स्मृता॥
(है. योग. 1/39) आसनादि को दृष्टि से भलीभांति देख कर और रजोहरण आदि से प्रमार्जन कर म यतनापूर्वक लेना अथवा रखना-'आदान निक्षेपण' समिति कहलाती है।
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19951 ओहोवहोवग्गहियं भण्डगं दुविहं मुणी। गिण्हन्तो निक्खिवन्तो य पउंजेज इमं विहिं॥
(उत्त. 24/13) मुनि ओघ-उपधिं (सामान्य उपकरण) और औपग्रहिक उपधि (विशेष उपकरण)卐 दोनों प्रकार के उपकरणों को लेने और रखने में इस विधि (सावधानी) का प्रयोग करे।
19961 चक्खुसा पडिलेहित्ता पमजेज जयं जई। आइए निक्खिवेज्जा वा दुहओ वि समिए सया ॥
(उत्त. 24/14) यतनापूर्वक प्रवृत्ति करने वाला यति दोनों प्रकार के उपकरणों को आंखों से प्रतिलेखन 卐 एवं प्रमार्जन करके ले और रखे।
FREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEER [जैन संस्कृति खण्ड/100