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________________ NUCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLELCLCLCLCLCLELELELELELELE 听听听听听听听听听听听听听 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 ____{944) 卐 से भिक्खू वा गामाणुगामं दूइज्जेजा, अंतरा से विहं सिया, से जं पुण विहं卐 卐 जाणेज्जा-एगाहेण वा दुयाहेण वा तियाहेण वा चउयाहेण वा पंचाहेण वा पाउणज्जा वा णो वा पाउणेजा। तहप्पगारं विहं अणेगाहगमणिज्जं सति लाढे जाव गमणाए। केवली बूया- आयाणमेतं । अंतरा से वासे सिया पाणेसु वा पणएसु वा बीएसु वा ॐ हरिएसु वा उदएसु वा मट्टियाए वा अविद्धत्थाए। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा जं तहप्पगारं विहं अणेगाहगमणिजं जाव णो गमणाए। ततो संजयामेव गामाणुगाम दूइजेजा। (आचा. 2/3/1 सू. 473) ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी यह जाने कि आगे लम्बा अटवी-मार्ग है। यदि उस अटवी-मार्ग के विषय में वह यह जाने कि यह एक दिन में, दो दिनों में, तीन दिनों में, चार दिनों में या पांच दिनों में पार किया जा सकता है, अथवा पार नहीं किया जा 卐 सकता तो विहार के योग्य अन्य मार्ग होते हुए, उस अनेक दिनों में पार किये जा सकने वाले है भयंकर अटवी-मार्ग से विहार करके जाने का विचार न करे। केवली भगवान् कहते हैंऐसा करना कर्म-बन्ध का कारण है, क्योंकि मार्ग में वर्षा हो जाने से द्वीन्द्रिय आदि जीवों की उत्पत्ति हो जाने पर, मार्ग में काई, लीलन-फूलन, बीज, हरियाली, सचित्त पानी और अविध्वस्त मिट्टी आदि के होने से संयम की विराधना होनी सम्भव है। इसीलिए भिक्षुओं के 卐 लिए तीर्थंकरादि ने पहले से इस प्रतिज्ञा हेतु, कारण और उपदेश का निर्देश किया है कि वह साधु अन्य साफ और एकाध दिन में ही पार किया जा सके ऐसे मार्ग के रहते, इस प्रकार ॐ के अनेक दिनों में पार किये जा सकने वाले भयंकर अटवी-मार्ग से विहार करके जाने का 卐 संकल्प न करे। अतः साधु को परिचित और साफ मार्ग से ही यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करना चाहिए। 如听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明 {945) तस्स इमा पंच भावणाओ पढमस्स वयस्स होंति पाणाइवायवेरमण-परिरक्खणट्ठयाए पढमं ठाण-गमण-गुणजोगनुं 卐 जणजुगंतरणिवाइयाए दिट्ठीए ईरियव्वं कीड-पयंग-तस-थावर-दयावरेण णिच्चं पुष्फ卐 फल-तय-पवाल-कंद-मूल-दग-मट्टिय-बीय-हरिय-परिवजिएण सम्मं । एवं खलु सव्वपाणा ण हीलियव्वा, ण णिंदियव्वा, ण गरहियव्वा, ण हिंसियव्वा, ण छिंदियव्वा, ण भिंदियव्वा, ण वहे यव्वा, ण भयं दुक्खं च किंचि लब्भा पावेलं, एवं ENABEERESTUREFERREEEEEEEEEEEEEEEEEEEER [जैन संस्कृति खण्ड/378
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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