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________________ {932) MEENEFYFAYERLEYEYENEFIFIYEYFRIYEFIFYFRIENFIEFFFFFFFFFFA ठाणे निसीयणे चेव तहेव य तुयट्टणे। उल्लंघण-पल्लंघणे इन्दियाण य मुंजणे॥ संरम्भ-समारम्भे आरम्भम्मि तहेव य। कायं पवत्तमाणं तु नियतेज जयं जई॥ (उत्त. 24/24-25) खड़े होने में, बैठने में, त्वगवर्तन में-लेटने में, उल्लंघन में-गड्डे आदि के लांघने * में, प्रलंघन में सामान्यतया चलने-फिरने में, शब्दादि विषयों में, इन्द्रियों के प्रयोग में, ॐ संरम्भ में , समारम्भ में और आरम्भ में प्रवृत्त काया का निवर्तन (नियन्त्रण) करे। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明 {933} मरदु व जिवदु व जीवो अयदाचारस्स णिच्छिदा हिंसा। पयदस्स णत्थि बंधो हिंसामेत्तेण समिदीसु ॥ (प्रव. 3/17 दूसरा जीव मरे अथवा न मरे, परन्तु अयतना-पूर्वक प्रवृत्ति करने वाले के हिंसा निश्चित है, अर्थात् वह नियम से हिंसा करने वाला है, तथा जो पांचों समितियों में यतनापूर्वक प्रवृत्त रहता है, उसके बाह्य हिंसामात्र से बंध नहीं होता है। [आत्मा में प्रमाद की उत्पत्ति होना भावहिंसा है और शरीर के द्वारा किसी प्राणी का विघात होना द्रव्यहिंसा 卐 है। भावहिंसा से मुनिपद का अन्तरङ्ग भङ्ग होता है और द्रव्यहिंसा से बहिरङ्ग भङ्ग होता है। बाह्य में जीव चाहे न मरे, चाहे न मरे; परन्तु जो मुनि अयतनाचार पूर्वक गमनागमनादि करता है उसके प्रमाद के कारण 'भावहिंसा' होने से मुनिपद का अन्तरङ्ग भङ्ग निश्चितरूप से होता है और जो मुनि प्रमादरहित प्रवृत्ति करता है, उसके बाह्य में जीवों का विघात होने पर भी प्रमाद के अभाव में 'भावहिंसा' न होने से हिंसाजन्य पापबन्ध नहीं होता है। भावहिंसा के साथ न होने वाली द्रव्यहिंसा ही पाप-बन्ध की कारण है। केवल द्रव्यहिंसा से पाप-बन्ध नहीं होता, परन्तु भावहिंसा द्रव्य GF हिंसा की अपेक्षा नहीं रखती। द्रव्य-हिंसा हो अथवा न भी हो, परन्तु 'भावहिंसा' के होने पर नियम से पापबन्ध होता है। इसलिये निरन्तर प्रमादरहित ही होकर प्रवृत्ति करना चाहिये।] 35$$$$$$$$$$$$$$$$$$%%%%%%%%%%%%%弱弱弱弱弱 19341 जियदु व मरदु व जीवो अयदाचारस्स णिच्छिदा हिंसा। पयदस्स णत्थि बंधो हिंसामित्तेण समिदस्स॥ (मूला. फलटन संस्क., पंचम अधिकार) -जीव मरे या न मरे, अयतनाचारी के निश्चित ही हिंसा होती है तथा समिति से 卐युक्त सावधान मुनि के (द्रव्य) हिंसामात्र से बन्ध नहीं होता है। FFEREFEREFEFTEHELESEEEEEEEEEEEN [जैन संस्कृति खण्ड/374
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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