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________________ SEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEgg a {927) कहं चरे? कहं चिठे? कहमासे? कहं सए? कहं भुंजतो भासंतो, पावं कम्मं न बंधई ॥ (30) जयं चरे, जयं चिठे, जयमासे, जयं सए। जयं भुजंतो भासंतो, पावं कम्मं न बंधई ॥ (31) (दशवै. 4/61-62) [प्रश्न-] (साधु या साध्वी) कैसे चले? कैसे खड़ा हो? कैसे उठे? कैसे सोए? ' कैसे खाए और कैसे बोले?, जिससे कि पापकर्म का बन्ध न हो? (30) [उत्तर-] (साधु या साध्वी) यतनापूर्वक चले, यतनापूर्वक खड़ा हो, यतनापूर्वक बैठे, यतना-पूर्वक सोए, यतनापूर्वक खाए और बोले, (तो वह) पापकर्म का बन्ध नहीं करता। (31) 弱弱弱弱弱弱弱弱弱$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$出 (928) जदं चरे जदं चिठे जदमासे जदं सये। जदं भुंजेज भासेज एवं पावं ण बज्झइ॥ (मूला. 10/1015) यतनापूर्वक गमन करे, यतनापूर्वक खड़ा हो, यतनापूर्वक बैठे, यतनापूर्वक सोवे, म यतनापूर्वक आहार करे और यतनापूर्वक बोले, इस तरह करने से पाप का बन्ध नहीं होगा 如听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 {929) जदं तु चरमाणस्स दयापेहुस्स भिक्खुणो। णवं ण बज्झदे कम्मं पोराणं च विधूयदि॥ (मूला. 10/1016) यतनापूर्वक चलते हुए, दया से जीवों को देखने वाले साधु के नूतन कर्म नहीं बंधते हैं और पुराने कर्म झड़ जाते हैं। 19301 आदाणे णिक्खेवे वोसरणे ठाणगमणसयणेसु। सव्वत्थ अप्पमत्तो दयावरो होइ हु अहिंसो॥ (भग. आ. 812) उपकरणों को ग्रहण करने में, रखने में, उठने-बैठने, चलने और शयन में जो दयालु है होकर सर्वत्र यतनाचारपूर्वक प्रवृत्ति करता है, वह अहिंसक होता है। NEERIEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE* [जैन संस्कृति खण्ड/372
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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