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________________ 这事! 编 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 (924) • दिवा सूर्यकरैः स्पृष्टं मार्ग लोकातिवाहितम् । दयार्द्रसत्त्वरक्षार्थं शनैः संश्रयतो मुनेः ॥ जब मुनि दिन में सूर्यकिरणों से स्पृष्ट व जन-समुदाय के आवागमन से संयुक्त मार्ग 馬 का आश्रय लेता है, तब वह प्राणि-‍ -रक्षा की दृष्टि से प्राणियों के रक्षणार्थ जुएं (चार हाथ के) 卐 $$$$$$$$ प्रमाण वाले मार्ग को देखता हुआ, धीरे-धीरे, सावधानीपूर्वक चलता है, उस प्रमादरहित मुनि के 'ईर्यासमिति' होती है। (925) लोकातिवाहिते मार्गे चुम्बिते भास्वदंशुभिः । जन्तुरक्षार्थमालोक्य गतिरीर्या मता सताम् ॥ (ज्ञा. 18/6/891) (926) दव्वओ खेत्तओ चेव कालओं भावओ तहा । जयणा चउव्विहा वृत्ता तं मे कित्तयओ सुण ॥ दव्वओ चक्खुसा पेहे जुगमित्तं च खेत्तओ । कालओ जाव रीएज्जा उवउत्ते य भावओ ॥ जिस मार्ग पर लोगों का आना-जाना होता हो तथा जिस मार्ग पर सूर्य की किरणें पड़ती हों, जीवों की रक्षा के लिए ऐसे मार्ग पर नीचे दृष्टि रख कर साधु पुरुषों द्वारा की जाने वाली जो गति है, उसे 'ईर्यासमिति' माना गया है। (है. योग. 1/36) 编卐卐卐卐卐卐卐 (उत्त. 24/6-7) 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ अहिंसा - विश्वकोश | 371 1 事 द्रव्य, ,क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से 'यतना' चार प्रकार की है । उसको मैं 卐 कहता हूं । सुनो :- द्रव्य से- आंखों से देखे । क्षेत्र से- युगमात्र भूमि को देखे । काल से - जब तक चलता रहे, तब तक देखे । भाव से उपयोगपूर्वक गमन करे। 卐 卐 卐
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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