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________________ FFFFFFFFFFFFFFFFFE M A (38) प्राणिनो दुःखहेतुत्वादधर्माय वियोजनम्। प्राणानां तु प्रमत्तस्य समितस्य न बन्धकृत् ॥ (ह. पु. 58/128) __ प्राणियों के दुःख का कारण होने से प्रमादी मनुष्य किसी के प्राणों का जो वियोग' * (विच्छेद) करता है वह अधर्म का कारण है- पापबन्ध का निमित्त है, परन्तु समितिपूर्वक प्रवृत्ति करने वाले प्रमादरहित जीवों द्वारा कदाचित् यदि किसी जीव के प्राणों का वियोग हो भी जाता हैकिसी जीव का वध भी हो जाता है, तो वह उसके लिए बन्ध का कारण नहीं होता है। 1391 明明明明明明明 $$$$$$$$$$$$$弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱 मृते वा जीविते वा स्याजन्तुजाते प्रमादिनाम्। बन्ध एव, न बन्धः स्याद्धिंसायाः संवृतात्मनाम्॥ __ (ज्ञा. 8/8/480) प्रमादी पुरुषों को भले ही उनके हाथ से किसी जीव की मृत्यु हो या न हो, निरन्तर 卐 ही हिंसा का पापबन्ध होता ही रहता है; और जो संवरसहित अप्रमादी हैं उनको, जीवों की हिंसा उनके द्वारा होते हुए भी, हिंसारूप पाप का बंध नहीं होता। 如明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听那 {40) प्रमत्तयोगात्प्राणव्यपरोपणं हिंसा। (त.सू. 7/8) ___प्रमाद-युक्त होकर अपने मन-वचन व काय की क्रिया द्वारा किसी जीव के प्राणों का घात करना अर्थात् उसके शरीर से प्राणों का वियोजन करना 'हिंसा' है। (41) जो य पमत्तो पुरिसो, तस्स य जोगं पडुच्च जे सत्ता। वावजंते नियमा, तेसिं सो हिंसओ होइ॥ जे वि न वावजंती, नियमा तेसिं पि हिंसओ सो उ। सावज्जो उ पओगेण, सव्वभावेण सो जम्हा ॥ (ओघ. नि. 752-53) जो प्रमत्त व्यक्ति है, उसकी किसी भी चेष्टा से जो भी प्राणी मर जाते हैं, वह निश्चित रूप ॥ F [जैन संस्कृति खण्ड/12 REEEEEEEEEEEEEENA
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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