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________________ YEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE M A संकल्प न करना 'हिंसा' है। अथवा 'मैं मारूं' ऐसा परिणाम 'हिंसा' है। इसलिए प्रमादीपना है नित्य प्राणों का घातक है। अर्थात् विकथा, कषाय आदि 15 प्रमाद रूप परिणाम अपने 'भाव । प्राणों' के और दूसरे के द्रव्यप्राण व भावप्राणों के घातक होने से 'हिंसा' कहे जाते हैं। 1341 यत्खलु कषाययोगात्प्राणानां द्रव्यभावरूपाणाम्। व्यपरोपणस्य करणं सुनिश्चिता भवति सा हिंसा॥ __ (पुरु. 4/7/43) कषाय-रूप परिणत मन, वचन, काय के योगों से द्रव्य और भावरूप दो प्रकार के प्राणों का जो घात करना है, वही निश्चित रूप से 'हिंसा' है। {35) हिंसाया अविरमणं हिंसापरिणमनमपि भवति हिंसा। तस्मात्प्रमत्तयोगे प्राणव्यपरोपणं नित्यम्॥ ____ (पुरु. 4/12/48) है हिंसा से विरत न होने से (हिंसा होती है) और हिंसा-रूप परिणमन करने से भी हिंसा होती है, इसलिए प्रमाद-कषाय के योग में निरन्तर प्राणघात रूप (हिंसा-दोष) का सद्भाव रहता ही है। ~~~~~~~~~~~~~~弱弱弱弱弱弱弱~~~~~~~~~卵~卵卵~卵明り {36) आया चेव अहिंसा, आया हिंस त्ति निच्छओ एसो। जो होइ अप्पमत्तो, अहिंसओ हिंसओ इयरो॥ (ओघ. नि. 754) निश्चय दृष्टि से आत्मा ही हिंसा है और आत्मा ही अहिंसा। जो प्रमत्त है वह हिंसक 卐 है, और जो अप्रमत्त है वह अहिंसक। जीवो कसायबहुलो संतो जीवाण घायणं कुणइ। सो जीववहं परिहरइ सया जो णिज्जियकसाओ॥ (भग. आ. 811) जो जीव कषाय की अधिकता रखता है, वह जीवों का घात करता है। और जो卐 कषायों को जीत लेता है वह सदा जीवों की हिंसा से दूर रहता है। अतः प्रमाद हिंसा का कारण है। अहिंसा व्रत के अभिलाषी को प्रमाद का त्याग करना चाहिए। NEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE * अहिंसा-विश्वकोश/11]
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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