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________________ 明明明明明明明明明明 ENEFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFa का आस्रवकारक है, छेदन-भेदनकारी है, क्लेश-द्वेषकारी है, परितापकारक है, प्राणियों के प्राणों का अतिपात करने वाला और जीवों का उपघातक है, इस प्रकार के मन (मानसिक विचारों) को (निर्ग्रन्थ)धारण (ग्रहण) न करे। म मन को जो भलीभांति जान कर पापमय विचारों से दूर रखता है, वही निर्ग्रन्थ है।) 卐 जिसका मन पापों (पापमय विचारों) से रहित है (वह निर्ग्रन्थ है)। यह द्वितीय भावना है। {920) अहावरा तच्चा भावणा-वई परिजाणति से णिग्गंथे,जा य वई पाविया सावज्जा म सकिरिया जाव भूतोवघातिया तहप्पगारं वइं णो उच्चारेजा। जे वई परिंजाणति से मणिग्गंथे जा य वइ अपाविय त्ति तच्चा भावणा। (आचा. 2/15/ सू. 778) अहिंसा महाव्रत से सम्बन्धित तृतीय भावना यह है- जो साधक वचन का स्वरूप । भलीभांति जान कर सदोष वचनों का परित्याग करता है, वह निर्ग्रन्थ है। जो वचन पापकारी, सावध, क्रियाओं से युक्त, कर्मों का आस्रवजनक, छेदन-भेदनकर्ता, क्लेश-द्वेषकारी है, म परितापकारक है, प्राणियों के प्राणों का अतिपात करने वाला और जीवों का उपघातक है, ' 卐साधु इस प्रकार के वचन का उच्चारण न करे। जो वाणी के दोषों को भलीभांति जान कर सदोष वाणी का परित्याग करता है, वही निर्ग्रन्थ है। उसकी वाणी पापदोष रहित हो, यह तृतीय भावना है। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听中 {921) अहावरा चउत्था भावणा-आयाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिते से णिग्गंथे, णो अणादाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिते । केवली बूया-आदाणभंडनिक्खेवणाअसमित्ते से णिग्गंथे पाणाई भूताई जीवाई सत्ताइंअभिहणेज वा जाव उद्दवेज वा। तम्हा म आयाणभंडणिक्खेवणासमिते से णिग्गंथे, णो अणादाणभंडणिक्खेवणासमिते त्ति चउत्था 卐 भावणा। (आचा. 2/15/ सू. 778) ____ अहिंसा महाव्रत से सम्बन्धित चौथी भावना यह है- जो आदानभाण्डमात्र निक्षेपण समिति से युक्त है, वह निर्ग्रन्थ है। केवली भगवान् कहते हैं- जो निर्ग्रन्थ 'आदानभाण्डमात्र निक्षेपण' समिति से रहित है, वह प्राणियों, भूतों, जीवों और सत्त्वों का अभिघात करता है, -7 WEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEET अहिंसा-विश्वकोश।3691
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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