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________________ FFFFFFFFFFFFFFFFFFF RPO अहिंसा का साकार रूपः अहंत अवस्था । {861) सत्तहिं ठाणेहिं केवली जाणेज्जा, तं जहा- णो पाणे अइवाइत्ता भवति । (णो मुसं वइत्ता भवति। णो अदिण्णं आदित्ता भवति। णो सद्दफरिसरसरूवगंधे 卐 आसादेत्ता भवति । णो पूयासक्करं अणुवूहेत्ता भवति । इमं सावज्जति पण्णवेत्ता णो ॥ म पडिसेवेत्ता भवति।) जहावादी तहाकारी यावि भवति। (ठा. 7/29) सात स्थानों (कारणों) से 'केवली' जाना जाता है। जैसे1. जो प्राणियों का घात नहीं करता है। 2. जो मृषा (असत्य) नहीं बोलता है। 3. जो अदत्त वस्तु को ग्रहण नहीं करता है। 4. जो शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध का आस्वादन नहीं लेता है। 5. जो पूजा और सत्कार का अनुमोदन नहीं करता है। 6. जो 'यह सावध है' ऐसा कह कर उसका प्रतिसेवन नहीं करता है। 7. जो जैसा कहता है, वैसा करता है। %%%%%%%%%%%%%%%s%%%%弱弱弱弱弱弱弱弱弱 弱弱弱弱弱弱弱弱弱%%%%%%%弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱 Oअहिंसा की दुष्करचर्या के आदर्श साधक: भगवान् गहावीर {862) पुढविं च आउ कायं च ते उकायं च वायुकायं च। पणगाइं बीयहरियाई तसकायं च सव्वसो णच्चा ॥ 52 ॥ एताई संति पडिले हे चित्तमंताई से अभिण्णाय। परिवजियाण विहरित्था इति संखाए से महावीरे ॥ 53 ॥ (आचा. 1/9/1 सू. 265) ॥ पृथ्वीकाय, अप्पकाय, तेजस्काय, वायुकाय, निगोद-शैवाल आदि, बीज और नाना प्रकार की हरी वनस्पति एवं त्रसकाय- इन्हें सब प्रकार से जान कर, 'ये अस्तित्वान् हैं', यह देख कर, 'ये चेतनावान् हैं' वह जान कर, उन के स्वरूप को भलीभांति अवगत करके वे भगवान् महावीर उनके आरम्भ/हिंसादि का परित्याग करके विहार करते थे। SEENEFFEEYAFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFE* [जैन संस्कृति खण्ड/348 ba
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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