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________________ FFFFFFFFFFEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEng {8500 पन्ने अभिभूय सव्वदंसी उक्सन्ते अविहेडए स भिक्खू ॥ (उत्त. 15/15) जो प्राज्ञ है, जो परीषहों को जीतता है, जो सब जीवों के प्रति समदर्शी है और ।। उपशान्त है, जो किसी को अपमानित नहीं करता है, वही भिक्षु है। {851) णिसम्मभासी य विणीयगिद्धो हिंसण्णितं वा ण कहं करेज्जा॥ 明明明明明明明明明明明明听听听听听听听 (सू.कृ. 1/10/10) ॥ सोच कर बोलने वाला और आसक्ति से दूर रहने वाला होकर (साधक) हिंसायुक्त कथा न करे। {852) से गिहेसु वा गिहतरेसु वा गामेसु वा गामंतरेसु वा णगरेसु वा णगंरतरेसु वा जणवएसु वा जणवयंतरेसु वा संतेगतिया जणा लूसगा भवंति अदुवा फासा फुसंति। 卐 ये ते फासे पुट्ठो धीरो अधियासए ओए समितदंसणे। (आचा. 1/6/5 सू. 196) वह (धुत/श्रमण) घरों में, गृहान्तरों में (घरों के आस-पास), ग्रामों में ग्रामान्तरों GE (ग्रामों के बीच) नगरों में, नगरान्तरों (नगरों के अन्तराल) में, जनपदों में या जनपदान्तरों (जनपदों के बीच) में (आहारादि के लिए विचरण करते हुए अथवा कायोत्सर्ग में स्थित 卐 मुनि को देखकर) कुछ विद्वेषी जन हिंसक- (उपद्रवी) हो जाते हैं, (वे अनुकूल या 卐 प्रतिकूल उपसर्ग देते हैं)। अथवा (सर्दी, गर्मी, डांस, मच्छर आदि परिषहों के) स्पर्श (कष्ट) प्राप्त होते हैं। उनसे स्पृष्ट होने पर धीर मुनि उन सबको (समभाव से) सहन करे। 少听听听听听听听听听听听听听听听听听$$$$$$$明明明明明明明明明明明明明那 {853 समावयंता वयणाभिघाया, कण्णंगया दुम्मणियं जणंति। धम्मो त्ति किच्चा परमग्गसूरे, जिइंदिए जो सहई, स पुज्जो ॥ (8) (दशवै. 9/499) ) (एक साथ एकत्र हो कर सामने से) आते हुए कटुवचनों के आघात (प्रहार) कानों में पहुंचते ही दौर्मनस्य उत्पन्न करते हैं, (परन्तु) जो वीर-पुरुषों का परम अग्रणी जितेन्द्रिय पुरुष 'यह मेरा धर्म है' ऐसा मान कर (उन्हें समभाव से) सहन कर लेता है, वही पूज्य 卐 होता है। (8) DebelLELELELCLCLCLCLCLCLELEUCOEUCULELEUCICUCUCUCUEUEUEUEUR [जैन संस्कृति खण्ड/344
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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