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________________ LELLELELELELELELELELELELCLCLCLCLELELELELELELE CICIELELEUCLE List {834} # स्नानमनेकप्रकारम्......... तन्न शीतोदकेन क्रियते स्थावराणां त्रसानां च बाधा ॥ जमाभूदिति। कर्दमबालुकादिमईनाजलक्षोभणात्तच्छरीराणां च वनस्पतीनां पीडातः मत्स्यदर्दुरसूक्ष्मत्रसानां च स्नानं निवार्यते। उष्णोदकेन सात्विति चेन्न, तत्र त्रसस्थावरबाधा स्थितैव। भूमिदरीविवरस्थितानां पिपीलिकादीनां मृतेः, तरुणतृणपल्लवानां + चोष्णाम्बुभिस्तप्तानां दुःखासिका महती जायते, तथा क्षारतया धान्यरसादीनाम्। ' (भग. आ. विजयो. 92) स्नान के अनेक प्रकार हैं..........स्थावर और त्रसजीवों को बाधा न हो, इसलिए ॐ (मुनि) स्नान ठण्डे जल से नहीं करते। कीचड़, रेत आदि के मर्दन से पानी में क्षोभ 卐 पैदा होता है और जिसके होने से उनमें रहने- वाले वनस्पतिकायिक जीवों को तथा मछली, मेढक और सूक्ष्म त्रस जीवों को पीड़ा होती है। इसलिए मुनि शीतल जल से स्नान नहीं करते। शंका- तब गर्म जल से स्नान करना चाहिए? समाधान- उसमें भी त्रस और स्थावर जीवों को होने वाली बाधा रहती ही है। पृथिवी तथा पहाड़ के बिलों में रहने वाली चींटी आदि के मरने से और उष्ण जल के ताप से कोमल तृण, पत्ते आदि के झुलसने से बड़ा दुःख होता है तथा जल के खारपने से धान्य 卐 के रस को भी हानि पहुंचती है। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明 明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明那 {835} जे मायरं च पियरं च हिच्चा समणव्वए अगणिं समारभिज्जा। अहाहु से लोए कुसीलधम्मे भूयाइ जे हिंसति आतसाते॥ (सू.कृ. 1/715) जो माता-पिता को छोड़, श्रमण का व्रत लेकर भी, अग्नि का समारंभ और अपने सुख के लिए प्राणियों की हिंसा करता है, वह लोक में कुशील धर्म वाला कहा गया है। {836} भावंमि उ पव्वज्जा आरंभपरिग्गहच्चाओ। (उत्त. नि. 263) आरम्भ (हिंसा) और परिग्रह का त्याग ही वस्तुतः भावप्रव्रज्या है। (अर्थात् साधु - प्रव्रजित होकर हिंसा व परिग्रह से सर्वथा मुक्त रहता है।) -FLEEVENELESELECTRENEUEUEUELEGE अहिंसा-विश्वकोश।339)
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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