SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 9555555'ERESERVEEREYEE (वैयावृत्त्यः उपकार-कार्य) (783) दव्वेण भावेण वा, जं अप्पणो परस्स वा उवकारकरणं, तं सव्वं वेयावच्चं ॥ __(नि. चू. 6605) भोजन, वस्त्र आदि द्रव्य रूप से, और उपदेश एवं सत्प्रेरणा आदि भाव-रूप से, जो भी अपने को तथा अन्य को उपकृत किया जाता है, वह सब वैय्यावृत्य है। (784) तेषां व्याधिपरिषहमिथ्यात्वाद्युपनिपाते कायचेष्टया द्रव्यान्तरेण वा तत्प्रतीकारो वैयावृत्त्यं समाध्याधानविचिकित्साभावप्रवचनवात्सल्याद्यभिव्यक्त्यर्थम्। ____ (सर्वा. 9/24/866) ॥ इन्हें (आचार्य आदि को) व्याधि होने पर, परीषह के होने पर एवं मिथ्यात्व आदि के प्राप्त होने पर, शरीर की चेष्टा द्वारा या अन्य द्रव्य द्वारा उनका प्रतीकार करना वैयावृत्त्य तप म है। यह समाधि की प्राप्ति, विचिकित्सा का अभाव और प्रवचनवात्सल्य की अभिव्यक्ति के 卐 लिए किया जाता है। $$$$$$頭弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱 {785} दीनान्धकृपणा ये तु व्याधिग्रस्ता विशेषतः । नि:स्वाः क्रियान्तराशक्ता एतद्वर्गो हि मीलकः॥ (यो.बि. 123) जो कार्य करने में अक्षम हैं, अंधे हैं, दुःखी हैं, विशेषतः रोग-पीड़ित हैं, निर्धन हैं, जिनके जीविका का कोई सहारा नहीं है, ऐसे लोग भी दान के पात्र हैं। Oअहिंसा व्रत का रक्षकः रात्रिभोजन-त्याग {786) रात्रौ भुञ्जानानां यस्मादनिवारिता भवति हिंसा। हिंसाविरतैस्तस्मात् त्यक्तव्या रात्रिभुक्तिरपि॥ (पुरु. 4/93/129) चूंकि रात में भोजन करने वालों को हिंसा अनिवार्य होती है, इसलिए हिंसा के त्यागियों को रात्रि-भोजन का भी त्याग करना चाहिए। 卐) )))) EEEEEEEEEEEEEEEEEE EEE) [जैन संस्कृति खण्ड/324
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy