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________________ ( रत्नक. श्रा. 97 ) 卐 दिग्व्रत तथा देशव्रत की मर्यादा के भीतर और बाहर सब जगह सामायिक के लिए म निश्चित समय में पांचों पापों का मन, वचन, काय, और कृत, कारित, अनुमोदना से त्याग करना, 'सामायिक' नामक शिक्षाव्रत कहलाता है । 卐 卐 $$$ 卐 (768) आसमयमुक्तिमुक्तं, पञ्चाघानामशेष - भावेन । सर्वत्र च सामयिका: सामयिकं नाम शंसन्ति ॥ ॐ चाहिए। 節 ! (769) व्यापार - वैमनस्याद्विनिवृत्त्यामन्तरात्मविनिवृत्या । सामायिकं बध्नीयादुपवासे चैकभुक्ते वा ॥ मन, वचन, विकल्पों को रोक कर उपवास और एकाशन के दिन विशेष रीति से सामायिक करना रागद्वेषत्यागान्निखिलद्रव्येषु साम्यमवलम्ब्य । तत्त्वोपलब्धिमूलं बहुश: सामायिकं कार्यम् ॥ काय की चेष्टा और मन की कलुषता से निवृत्ति होने पर, मन के 卐 (770) ( रत्नक. श्री. 100) {771} त्यक्तार्त्तरौद्रध्यानस्त्यक्त- सावद्यकर्मणः 1 मुहूर्तं समता या तां विदुः सामायिक- व्रतम् ॥ रागद्वेष के त्याग से सभी इष्ट-अनिष्ट पदाथों में समता-भाव को अंगीकार करके आत्म-तत्त्व की प्राप्ति के मूल कारण ऐसी सामायिक को अनेक बार करना चाहिए । 编编编编编卐 [ जैन संस्कृति खण्ड /320 (पुरु. 4/112/148) רכרכרם आर्त्त और रौद्र ध्यान का त्याग करके सर्व प्रकार के ( हिंसा आदि) पाप - व्यापारों (है. योग. 3/82 ) का त्याग कर एक मुहूर्त तक समता धारण करने को महापुरुषों ने 'सामायिक' व्रत कहा है। COOLEDADE $$$$$$$$$ כבבבבבבברברברברברברברברם 卐 馬 $$$$$$$$$$$$$$$$$$ 卐 卐
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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