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________________ $$$$$$$$$$$$$$$$$ 卐 馬 $$$$$$$$$$$$$$$$$ 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 {719} सर: कूपादिखनन - शिलाकुट्टनकर्मभिः । पृथिव्यारम्भसम्भूतैर्जीवनं स्फोटजीविका ॥ तालाब, कुंए आदि खोदने, पत्थर फोड़ने इत्यादि पृथ्वीकाय के घातक कर्मों से जीविका चलाना 'स्फोटक-जीविका' है। (720) ग्रहणमाकरे । दंतकेशनखास्थित्वग्रोम्णो त्रसाङ्गस्य वाणिज्यार्थं दन्तवाणिज्यमुच्यते ॥ (है. योग. 3/105) दांत, केश, नख, हड्डी, चमड़ा, रोम इत्यादि जीवों के अंगों को उनके उत्पत्ति - (721) लाक्षा-मन : शिला- नीली- धातकी - टङ्कणादिनः । विक्रयः पापसदनं लाक्षावाणिज्यमुच्यते ॥ (है. योग. 3 / 106 ) (722) 1 नवनीत - वसा- क्षौद्र- मद्यप्रभृतिविक्रयः द्विपाच्चतुष्पाद्विक्रयो वाणिज्यं रसकेशयोः ॥ स्थानों पर जा कर व्यवसाय के लिए ग्रहण करना और बेचना 'दंत-वाणिज्य' कहलाता है । 卐 लाख, मेनसिल, नील, धातकी वृक्ष, टंकणखार आदि पापकारी वस्तुओं का व्यापार करना 'लाक्षावाणिज्य' कहलाता है । चार पैर वाले जीवों का व्यापार 'केशवाणिज्य' कहलाता है। (है. योग. 3 / 107 ) (है. योग. 3 / 108) मक्खन, चर्बी, शहद, मदिरा आदि का व्यापार 'रसवाणिज्य' और दो पैर वाले और $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 编卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 अहिंसा - विश्वकोश | 303] 馬 卐
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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