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________________ FFEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE5555 (708) धम्मरयणस्स जोगो, अक्खुद्दो रुववं पगइसोम्मो। लोयप्पियो अक्कूरो, भीरु असठो सुदक्खिन्नो। लज्जालुओ दयालू, मज्झत्थो सोम्मदिट्ठी गुणरागी। सक्कह सपक्खजुत्तो, सुदीहदंसी विसेसन्नु। वुड्ढाणुरागो विणीओ, कयन्नुओ परहिजत्थकारी य। तह चेव लद्धलक्खो, एगवीसगुणो हवई सड्ढो॥ (प्रवचनसारोद्धार 1356-1358) धर्म को धारण करने योग्य श्रावक में 21 गुण होने चाहिएं। यथाः- 1. अक्षुद्र, 2. म रूपवान्, 3. प्रकृति-सौम्य, 4. लोकप्रिय, 5. अक्रूर, 6. पापभीरु, 7.अशठ (छल नहीं करने 卐 卐 वाला), 8. सदाक्षिण्य (धर्मकार्य में दूसरों की सहायता करने वाला), 9. लज्जावान्, 10.' दयालु, 11. रागद्वेषरहित (मध्यस्थभाव में रहने वाला), 12. सौम्यदृष्टि वाला, 13. गुणरागी + 14. सत्य कथन में रुचि रखने वाला-धार्मिक परिवारयुक्त, 15. सुदीर्घदर्शी, 16. विशेषज्ञ 17. वृद्ध महापुरुषों के पीछे चलने वाला, 18. विनीत, 19. कृतज्ञ (किए उपकार को समझने वाला,) 20. परहित करने वाला, 21. लब्धलक्ष्य (जिसे लक्ष्य की प्राप्ति प्रायः हो गई हो।) {709) पापविसोत्तिग परिणामवजणं पियहिदे य परिणामो। णायव्वो संखेवेण एसो माणस्सिओ विणओ॥ ___ (भग. आ. 127) पाप को लाने वाले परिणामों को न करना, जो गुरु को प्रिय और हितकर हो, उसी * में परिणाम (मन) लगाना, इसे संक्षेप से मानसिक विनय जानना। अहिंसा-विश्वकोश/2971
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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