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________________ E FFEEEEEEEEEEEEEEEE {656) त्रसहतिपरिहरणार्थ, क्षौद्रं पिशितं प्रमादपरिहतये। मद्यं च वर्जनीयं, जिनचरणौ शरणमुपयातैः॥ (रत्नक. श्रा. 84) ___मधु और मांस के खाने से त्रस जीवों की हिंसा होती है और मदिरा पीने से त्रसहिंसा ॥ है तथा मोह की उत्पत्ति होती है, इसलिए इस व्रत के धारक को इन तीनों का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए। 1657) योनिरुदुम्बरयुग्मं प्लक्षन्यग्रोधपिप्पलफलानि । त्रसजीवानां तस्मात्तेषां तद्भक्षणे हिंसा ॥ (पुरु. 4/36/72) ऊमर, कठूमर, पाकर, बड़ और पीपल वृक्ष- इन उदुम्बरों के फल त्रस जीवों की म खान होते हैं, इसलिये उनके खाने में उन त्रस जीवों की हिंसा होती है। {658) यानि तु पुनर्भवेयुः कालोच्छिन्नत्रसाणि शुष्काणि। भजतस्तान्यपि हिंसा विशिष्टरागादिरूपा स्यात् ॥ __ (पुरु. 4/37/73) __ जो पांच उदुम्बर फल (ऊमर, कठूमर, पाकर, बड़, पीपल) काल बीतने पर त्रस जीवों से रहित होकर सूख गये हों, तो भी उनके खाने वाले को विशेष रागादि रूप हिंसा CE होती है- लगती है। 弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱 弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱$$$$$$$$$$$$$$$$$ {659) मांसमद्यमधुबूतवेश्यास्त्रीनक्तभुक्तितः । विरतिनियमो ज्ञेयोऽनन्तकायादिवर्जनम्॥ (ह. पु. 58/157) मांस, मदिरा, मधु, जुआ, वेश्या तथा रात्रिभोजन से विरत होना एवं अनन्तकाय 卐 फलादि का त्याग करना 'नियम' कहलाता है। अहिंसा-विश्वकोश/275]
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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