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________________ FREEEEEEEEEEEEEEMA {653) अप्राप्नुवन्नन्यभक्ष्यमपि क्षामो बुभुक्षया । न भक्षयति पुण्यात्मा पञ्चोदुम्बरजं फलम्॥ ___ (है. योग. 3/43) ___ विषम (दुर्भिक्ष पड़े हुए) देश और काल में जहां भक्ष्य अन्न, फल आदि नहीं 卐 मिलते हों, कड़ाके की भूख लगी हो; भूख के मारे शरीर कृश हो रहा हो, तब भी पुण्यात्मा लोग पंचोदुम्बरफल नहीं खाते। {654) 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 明明明明的 आर्द्र-कन्दः समग्रोऽपि सर्व: किशलयोऽपि च । स्नुही लवणवृक्षत्वक् कुमारी गिरिकर्णिका॥ शतावरी, विरूढानि गुडूची कोमलाम्लिका। पल्यंकोऽमृतवल्ली च वल्लः शूकरसंज्ञितः॥ अनन्तकायाः सूत्रोक्ता अपरेऽपि कृपापरैः। मिथ्यादृशामविज्ञाता वर्जनीयाः प्रयत्नतः॥ ___ (है. योग. 3/44-46) समस्त हरे कन्द, सभी प्रकार के नये पल्लव (पत्ते), थूहर, लवणवृक्ष की छाल, 卐 कुंआरपाठा, गिरिकर्णिका लता, शतावरी, फूटे हुए अंकुर, गिलोय, कोमल इमली, पालक ' 卐 का साग, अमृत बेल, शूकर जाति के बाल, इन्हें सूत्रों में अनन्तकाय कहा है। और भी अनन्तकाय हैं, जिनसे मिथ्यादृष्टि अनभिज्ञ हैं, उन्हें भी दयापरायण श्रावकों को यतनापूर्वक छोड़ देना चाहिए। (655) मद्य-पल-मधु-निशासन-पञ्चफलीविरति-पञ्चकाप्तनुती। जीवदया जलगालनमिति च क्वचिदष्ट मूलगुणाः॥ (सा. ध. 2/18) मद्य का त्याग, मांस का त्याग, मधु का त्याग, रात्रि-भोजन का त्याग, पांच उदुम्बर 卐 फलों का त्याग, त्रिकाल देववन्दना, जीव-दया और छने पानी का उपयोग, ये आठ मूलगुण शास्त्र में कहे गए हैं। PLELELELLELEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE [जैन संस्कृति खण्ड/274
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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