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________________ REEEEEEEEEEEEEEMA जो अविरय-अपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे,तं. पाणातिवाते जाव मिच्छादंसणसल्ले, एस खलु भगवता अक्खाते असंजते अविरते अपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे सुविणमवि अपस्सतो पावे य कम्मे से कज्जति।................जे इमे असण्णिणो पाणा, तं. 卐 पुढविकाइया जाव वणस्सतिकाइया छट्ठा वेगतिया तसा पाणा, जेसिंणो तक्का ति वा ॥ 卐सण्णा ति वा पण्णाइ वा मणो ति वा वई ति वा सयं वा करणाए अण्णेहिं वा कारवेत्तए करेंतं वा समणुजाणित्तए ते वि णं बाला सव्वेसिं पाणाणं जाव सव्वेसिं सत्ताणं दिया वा रातो वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूता मिच्छासंठिता निच्चं पसढविओवात चित्तदंडा, तं. पाणातिवाते जाव मिच्छादसणसल्ले, इच्चेवं जाण, 卐 ॐणो चेव मणो णो चेव वई पाणाणं जाव सत्ताणं दुक्खणताए सोयणताए जूरणताए . तिप्पणताए पिट्टणताए परितप्पणताए ते दुक्खण-सोयण जाव परितप्पण-वहबंधणपरिकिलेसाओ अप्पडिविरता भवंति। इति खलु ते असण्णिणो वि संता अहोनिसं पाणातिवाते उवक्खाइज्जंति जाव अहोनिसं परिग्गहे उवक्खाइज्जति जाव मिच्छादसणसल्ले उवक्खाइज्जंति। (सू.कृ. 2/4/751) (संज्ञि-दृष्टान्त) जो ये प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर संज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तक जीव हैं, इनमें पृथ्वीकाय से लेकर त्रसकाय तक षड्जीवनिकाय के जीवों में से यदि कोई पुरुष पृथ्वीकाय से ही अपना आहारादि कृत्य करता है, कराता है, तो उसके मन में ऐसा विचार होता है कि 卐 मैं पृथ्वीकाय से अपना कार्य करता भी हूं और कराता भी हूं (या अनुमोदन करता हूं), उसे उस समय ऐसा विचार नहीं होता (या उसके विषय में ऐसा नहीं कहा जा सकता है) कि वह इस या इस (अमुक) पृथ्वी (काय) से ही कार्य करता है, कराता है, संपूर्ण पृथ्वी से 卐 नहीं। (उसके सम्बन्ध में यही कहा जाता है कि) वह पृथ्वीकाय से ही कार्य करता है और * कराता है। इसलिए वह व्यक्ति पृथ्वीकाय का असंयमी, उससे अविरत, तथा उसकी हिंसा का प्रतिघात (नाश) और प्रत्याख्यान किया हुआ नहीं है। इसी प्रकार त्रसकाय तक के जीवों 卐 के विषय में कहना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति छहकाया के जीवों से कार्य करता है, कराता ॐ भी है, तो वह यही विचार करता (या कहता) है कि मैं छह काया के जीवों से कार्य करता : हूं कराता भी हूं। उस व्यक्ति को ऐसा विचार नहीं होता, (या उसके विषय में ऐसा नहीं कहा 卐 जाता) कि वह इन या इन (अमुक-अमुक) जीवों. से ही कार्य करता और कराता है, 卐 卐 (सबसे नहीं); क्योंकि वह सामान्य रूप से उन छहों जीवनिकायों से कार्य करता है और 明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听$$$$$$$$ का- CUCUELCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLELELELELELELELELEUCLELE न ग गनगमगायन [जैन संस्कृति खण्ड/232
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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